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________________ परिशिष्ट ४६३ असंभव गाथा गाथा असंयम के भेद से दो प्रकार का है। प्राणि- उद्देशिक २८६ असंयम के ६ और इन्द्रिय-असंयम के ६ जो आहार किसी के निमित्त से बनाया भेद हैं। जाता है उसे उद्देशिक कहते हैं। अज्ञान ___२३ उपगूहन अंग २३३ मिथ्यात्व से दूषित ज्ञान अज्ञान है। इसके परनिन्दा का भाव नहीं होना। इस अंग का कुमति, कुश्रुत और कुअवधि के भेद से दूसरा नाम उपबृंहण भी है, जिसका अर्थ तीन भेद हैं। आत्मगुणों की वृद्धि करना है। अव्याप्तिदोष ६८ उपयोग ३६ लक्ष्य के एक देश में रहनेवाला लक्षण, आत्मा की चैतन्यगुण से सम्बन्ध रखने जैसे जीव रागादि से रहित है। वाली परिणति को उपयोग कहते हैं। इसके ५८ दो भेद हैं- १. ज्ञानोपयोग और जिसका लक्ष्य में हरना सम्भव न हो, जैसे २. दर्शनोपयोग। जीव का लक्षण अज्ञान। उपादान कारण ८२ अधःकर्म २८७ जो स्वयं कार्यरूप परिणमता है वह जो आहार पापकर्म से उपार्जितद्रव्य के उपादान कारण है, जैसे घड़ा का उपादन द्वारा बनाया गया है उसे अधःकर्म कहते मिट्ठी। उपादानोपादेयभाव आभिनिबोधिक ज्ञान २०४ जो स्वयं कार्यरूप परिणमन करता है वह यह मतिज्ञान का दूसरा नाम है। इन्द्रिय उपादान है, और उससे जो कार्य होता है और मन की सहायता से जो ज्ञान होता है वह उपादेय है। यह उपादानोपादेयभाव एक उसे मतिज्ञान कहते हैं। इसके अवग्रह, द्रव्य में ही होता है, भिन्न द्रव्यों में नहीं। ईहा, अवाय और धारणा भेद से चार कर्तृकर्मभाव ७० भेद हैं। जो कार्यरूप परिणमन करता है उसे कर्ता आलोचना ३८५ और जो परिणमन है उसे कर्म कहते हैं। वर्तमान के दोषों पर पश्चात्ताप करना। जैसे 'मिट्टी से घट बना', यहाँ मिट्टी कर्ता आस्रव ६९ है और घट कर्म है। आत्मा में कर्मप्रदेशों का आगमन आस्रव कर्म १९ कहलाता है। इसके द्रव्यास्रव और ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म आत्मा के प्रत्येक भावस्रव के भेद से दो भेद हैं। प्रदेशों के साथ कार्मणवर्गणा के कर्मरूप उदयस्थान ५३ होने के उम्मेदवार पुद्गल परमाणु लगे हुए अपना फल प्रदान करने में समर्थ कर्मों की हैं। आत्मा के रागादि भावों का निमित्त पाकर वे कर्मरूप परिणम जाते हैं। उदयावस्था। ११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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