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________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार जह्मा जाणइ णिच्चं तम्हा जीवो द जाणओ णाणी । णणं च जाणयादो अव्वदिरित्तं मुणेयव्वं ।।४०३ ।। सुत्तमंगपुव्वगयं । णाणं सम्मादिट्ठि दु संजमं धम्माधम्मं च तहा पव्वज्जं अब्भुवंति बुहा ||४०४।। (पञ्चदशकम्) अर्थ- शास्त्र ज्ञान नहीं है क्योंकि शास्त्र कुछ भी नहीं जानता है, इससे ज्ञान अन्य है और शास्त्र अन्य है, ऐसा जिन भगवान् जानते हैं। शब्द ज्ञान नहीं है क्योंकि शब्द कुछ नहीं जानता है, इससे ज्ञान अन्य है और शब्द अन्य है, ऐसा जिनेन्द्रदेव जानते हैं। ३९१ रूप ज्ञान नहीं है क्योंकि रूप किंचिन्मात्र भी नहीं जानता है, इससे ज्ञान अन्य है और रूप अन्य है, ऐसा जिनेन्द्र भगवान् जानते हैं । वर्ण ज्ञान नहीं है क्योंकि वर्ण कुछ नहीं जानता है, इसीसे ज्ञान अन्य है और वर्ण अन्य है, ऐसा जिनेन्द्र प्रभु जानते हैं । गन्ध ज्ञान नहीं है क्योंकि गन्ध कुछ भी नहीं जानता है, इसीलिये ज्ञान अन्य और गन्ध अन्य है, ऐसा जिनेन्द्रदेव जानते हैं। रस ज्ञान नहीं है क्योंकि रस कुछ भी नहीं जानता है, इसीसे ज्ञान अन्य है और रस अन्य है, ऐसा जिनस्वामी जानते हैं। स्पर्श ज्ञान नहीं है क्योंकि स्पर्श कुछ भी नहीं जानता है, इसीसे ज्ञान अन्य है और स्पर्श अन्य है, ऐसा भगवान् केवली जानते हैं। कर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि कर्म कुछ भी नहीं जानता है, इसलिये ज्ञान अन्य है और कर्म अन्य है, ऐसा भी जिनेश जानते हैं । धर्मास्तिकाय ज्ञान नहीं है क्योंकि धर्म अस्तिकाय कुछ भी नहीं जानता है, इसीसे धर्म अस्तिकाय अन्य है और ज्ञान अन्य है, ऐसा अनन्तज्ञानी जानते हैं । अधर्मास्तिकाय ज्ञान नहीं है क्योंकि अधर्मास्तिकाय कुछ भी नहीं जानता है, इसीसे ज्ञान अन्य है और अधर्मास्तिकाय अन्य है, ऐसा सर्वज्ञदेव जानते हैं । काल ज्ञान नहीं है क्योंकि काल कुछ भी नहीं जानता है, इसीसे ज्ञान अन्य है और काल अन्य है, ऐसा सकलपरमात्मा जानते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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