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________________ ३८४ समयसार औदारिकशरीरनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ५८, मैं वैक्रियिकशरीरनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ५९, मैं आहारकशरीर नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६०, मैं तैजसशरीरनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६१, मैं कार्माणशरीरनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६२, मैं औदारिकशरीरराङ्गोपाङ्गनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६३, मैं वैक्रियिकशरीराङ्गोपाङ्गनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६४, मैं आहारकशरीराङ्गोपाङ्गनाकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६५, मैं औदारिकशरीरबन्धननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६६, वैक्रियिकशरीरबन्धननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६७, मैं आहारकशरीरबन्धननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६८, मैं तैजसशरीरबन्धननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ६९, मैं कार्मणशरीरबन्धननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७०, मैं औदारिकशरीरसंघातनाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७१, मैं वैक्रियिकशरीरसंघातनाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७२, मैं आहारकशरीरनाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७३, मैं तैजसशरीरसंघातनाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७४, मैं कार्मणशरीरसंघातनाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७५, मैं समचतुरस्रसंस्थाननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ चैतन्यस्वरूप० ७६, मैं न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७७, मैं स्वातिसंस्थाननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७८, मैं कुब्जकसंस्थाननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ७९, मैं वामनसंस्थाननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८०, मैं हुण्डकसंस्थाननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८१, मैं वज्रर्षभनाराचसंहनननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८२, मैं वज्रनाराचसंहनननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८३, मैं नाराचसंहनननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ८४, मैं अर्धनाराचसंहनननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८५, मैं कीलकसंहनननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८६, मैं असंप्राप्तसृपाटिकासंहनननाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८७, मैं स्निग्धस्पर्शनाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८८, मैं रूक्षस्पर्शनाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ८९, मैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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