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________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार ३८३ मायाकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; चैतन्यस्वरूप० २८, मैं अप्रत्याख्यानावरणीय मायाकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० २९, मैं प्रत्याख्यानावरणीय मायाकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ३०, संज्वलनमायाकषायवेदनीय मोहकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ३१, मैं अनन्तानुबन्धी लोभकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ३२, मैं अप्रत्याख्यानावरणीय लोभकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ० ३३, मैं प्रत्याख्यानावरणीय लोभकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ३४, मैं संज्वलन लोभकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ३५, मैं हास्यनोकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ३६, मैं रतिनोकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ० ३७, मैं अरतिनोकषायवेदनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ० ३८, मैं शोकनोकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ० ३९, मैं भयनोकषायवेदनीय मोहनीयकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ० ४०, मैं जुगुप्सानोकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ० ४१, मैं स्त्रीवेदनोकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप ० ४२, मैं पुरुषवेदनोकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ चैतन्यस्वरूप० ४३, मैं नपुंसवेदनोकषायवेदनीय मोहनीय कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ४४, मैं नरकायुः कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ४५, मैं तिर्यगायुः कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ४६, मैं मानुषायुः कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ४७, मैं देवायुः कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ४८, मैं नरकगतिनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ४९, मैं तिर्यग्गतिनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ५०, मैं मनुष्यगतिनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ५१, मैं देवगतिनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ५२, मैं एकेन्द्रियजातिनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० ५३, मैं द्वीन्द्रियजातिनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० त्रीन्द्रियजातिनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, चैतन्यस्वरूप० पञ्चेन्द्रियजातिनाम कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ चैतन्यस्वरूप० ५४, मैं Jain Education International For Personal & Private Use Only ५५, मैं ५६, मैं ५७, मैं www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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