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समयसार
हुए अन्य को अनुज्ञा दी थी वह मेरा पाप काय से मिथ्या हो २८, जिसे मैंने किया था मेरा वह पाप मन, वचन और काय से मिथ्या हो २९, जिसे मैंने कराया था मेरा वह पाप मन, वचन और काय से मिथ्या हो ३०, जिस पाप को करते हुए दूसरे को मैंने अनुज्ञा दी थी, मेरा वह पाप मन, वचन और काय से मिथ्या हो ३१, जिसे मैंने किया था मेरा वह पाप मन से तथा वचन से मिथ्या हो ३२, जिसे मैंने कराया था मेरा वह पाप मन और वचन से मिथ्या हो ३३, जिस पाप को करते हुए अन्य पुरुष को मैंने अनुज्ञा दी थी, मेरा वह पाप मन और वचन से मिथ्या हो ३४, जिसे मैंने किया था मेरा वह पाप मन और काय से मिथ्या हो ३५, जिसे मैंने कराया था मेरा वह पाप मन और काय से मिथ्या हो ३६, जिस पाप को करते हुए अन्य को मैंने अनुज्ञा दी थी मेरा वह पाप मन और काय से मिथ्या हो ३७, जिसे मैंने किया था मेरा वह पाप वचन और काय से मिथ्या हो ३८, जिसे मैंने कराया था मेरा वह पाप वचन और काय से मिथ्या हो ३९, जिस पाप को करते हुए अन्य को मैंने अनुज्ञा दी थी मेरा वह पाप वचन और काय से मिथ्या हो ४०, जिसे मैंने किया था मेरा वह पाप मन से मिथ्या हो ४१, जिसे मैंने कराया था मेरा वह पाप मन से मिथ्या हो ४२, जिसे करते हुए अन्य को मैंने अनुज्ञा दी थी मेरा वह पाप मन से मिथ्या हो ४३, जिसे मैंने किया था मेरा वह पाप वचन से मिथ्या हो ४४, जिसे मैंने कराया था मेरा वह पाप वचन से मिथ्या हो ४५, जिसे करते हुए दूसरे को मैंने अनुज्ञा दी थी मेरा वह पाप वचन से मिथ्या हो ४६, जिसे मैंने किया था मेरा वह पाप काय से मिथ्या हो ४७, जिसे मैंने कराया था मेरा वह पाप काय से मिथ्या हो ४८, जिसे करते हुए अन्य को मैंने अनुज्ञा दी थी मेरा वह पाप काय से मिथ्या हो।४९।'
१. इन ४९ भंगों के भीतर पहले भंग में कृत, कारित, अनुमोदना, ये तीन लिये हैं
और उन पर मन, वचन, काय ये तीन लगाये हैं, इसलिये इस भङ्ग का सांकेतिक नाम ३३ है। २ से ४ तक के भंग में कृत, कारित, अनुमोदना के तीनों लेकर उन पर मन, वचन, काय में से दो-दो लगाये हैं। इस प्रकार बने हुए इन तीन भंगों को ३२ की संज्ञा है। ५ से ७ तक के भंगों में कृत, कारित, अनुमोदना के तीनों लेकर उन पर मन, वचन, काय में से एक-एक लगाया है। इन तीनों भंगों को ३१ की संज्ञा से पहिचाना जा सकता है। ८ से १० तक के भंगों में कृत, कारित, अनुमोदना में से दो-दो लेकर उनपर मन, वचन, काय तीनों लगाये हैं। इन तीनो भंगों को २३ की संज्ञा से जाना जा सकता है। ११ से १९ तक के भंगों में कृत कारित, अनुमोदना में दो-दो लेकर उन पर मन, वचन, काय में से दो-दो लगाये हैं। इन नौ भंगों को २२ की संज्ञा से पहिचाना जा सकता है। २० से २८ तक के
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