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मोक्षाधिकार
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कारण शुद्ध होता हुआ मुक्त हो जाता है-संसार के बन्धन से छूट जाता है।।१९०।। आगे पूर्णज्ञान की महिमा का गान करते हुए कलशा कहते हैं
मन्दाक्रान्ताछन्द बन्धच्छेदात्कलयदतुलं मोक्षमक्षय्यमेत
नित्योद्योतस्फुटितसहजावस्थमेकान्तशुद्धम्। एकाकारस्वरसभरतोऽस्यन्तगम्भीरधीरं
___पूर्ण ज्ञानं ज्वलितमचले स्वस्य लीनं महिम्नि।।१९१।। अर्थ- कर्मबन्ध के छेद से जो अतुल तथा अविनाशी मोक्ष को प्राप्त हुआ है, जिसकी सहज स्वाभाविक अवस्था नित्य प्रकाश से प्रकट हुई है, जो अत्यन्त शुद्ध हैं, एकाकार स्वरस के भार से अत्यन्त गम्भीर है, धीर है, अपनी अचल महिमा में लीन है, ऐसा पूर्णज्ञान सदा देदीप्यमान रहता है।।१९१।।
इस प्रकार मोक्ष रङ्गभूमि से बाहर निकल गया।
इस प्रकार कुन्दकुन्दाचार्य विरचित समयप्राभृत में मोक्ष का वर्णन
करनेवाले आठवें अधिकार का प्रवचन पूर्ण हुआ।।८।।
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