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समयसार
सन्नद्ध रहनेवाली अर्थात् उपयोगरूप परिणत केवलज्ञानरूप वह ज्योति इस तरह प्रकट होती है कि कोई दूसरा पदार्थ उसके प्रसार को रोकने में समर्थ नहीं होता।। १७९।।
इस प्रकार बन्ध रङ्गभूमि से बाहर निकल गया।
इस तरह श्रीकुन्दकुन्दाचार्य द्वारा विरचित समयप्राभृत में बन्धपदार्थ का प्ररूपण करनेवाले सातवें बन्धाधिकार का प्रवचन पूर्ण हुआ।।७।।
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