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समयसार
विशेषार्थ- इसप्रकार अज्ञान से जैसा हिंसा के विषय में यह अध्यवसायभाव किया जाता है वैसा ही असत्य, अदत्त, अब्रह्य और परिग्रह के विषय में जो
अध्यवसाय किया जाता है वह सब केवल पापबन्ध का हेतु है और अहिंसा के विषय में जैसा अध्यवसाय किया जाता है वैसा ही सत्य-दत्त-ब्रह्म और अपरिग्रह के विषय में जो अध्यवसाय किया जाता है वह सब केवल पुण्यबन्ध का हेतु है।
भाव यह है कि जैसे हिंसा में अहंकार रस से भरे हुए मलिनभाव से पाप का बन्ध होता है। वैसे ही झूठ, चोरी, मैथुन और परिग्रह में भी अहंकार रस से पूरित जो कर्तृत्वभाव है वह भी पाप का जनक है। इसीतरह अहिंसा में होनेवाला कर्तृत्वभाव जिस प्रकार पुण्य का जनक है उसी तरह सत्यभाषण, दत्तग्रहण, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह में भी होनेवाला कर्तृत्वभाव पुण्य का जनक है।।२६३-२६४।।
आगे अध्यवसानभाव ही बन्ध का कारण है, बाह्य वस्तु बन्ध का कारण नहीं है, यह कहते हैं
वत्थु पडुच्च जं पुण अज्झवसाणं तु होइ जीवाणं। ण य वत्थुदो दु बंधो अज्झवसाणेण बंधोत्थि।।२६५।।
अर्थ- जीवों के जो अध्यवसान होता है वह यद्यपि बाह्य वस्तु की अपेक्षा होता है फिर भी बाह्य वस्तु से बन्ध नहीं होता, अध्यवसानभाव के ही द्वारा बन्ध होता है।
विशेषार्थ- अध्यवसानभाव ही बन्ध का कारण है, बाह्य वस्तु बन्ध का कारण नहीं होती। बाह्य वस्तु, बन्ध का कारण जो अध्यवसानभाव है उसके हेतुपन से ही चरितार्थ होती है। जिसप्रकार इन्द्रियाँ ज्ञान की उत्पत्ति में कारण हैं परन्तु अज्ञान की निवृत्ति में ज्ञान ही कारण है। इसी प्रकार बाह्य वस्तु अध्यवसान की उत्पत्ति में कारण है परन्तु बन्ध में अध्यवसान भाव ही कारण है। यहाँ प्रश्न होता है कि जब बाह्य पदार्थ बन्ध में कारण नहीं तब उनका प्रतिषेध करने से क्या लाभ है? इसका उत्तर यह है कि अध्यवसान के निषेध के अर्थ बाह्य पदार्थों का निषेध है क्योंकि अध्यवसानभाव का आश्रयभूत बाह्य पदार्थ है। बाह्य पदार्थ के आश्रय के विना अध्यावसान अपने आत्मलाभ को नहीं कर सकता है। यदि बाह्य वस्तु के आश्रय के बिना भी अध्यवसानभाव की उत्पत्ति हो जावे तो जैसे यह अध्यवसानभाव होता है कि मैं वीरजननी के पुत्र को मारूँ वैसे ही बन्ध्या पुत्र को मैं मारूँ, ऐसा भी अध्यवसानभाव होने लगेगा। परन्तु ऐसा अध्यवसानभाव होता नहीं, क्यों वीरजननी के पुत्र की तरह बन्ध्यापुत्र का सद्भाव नहीं। अत: वीरप्रसविनी माता के पुत्र को जैसे मैं मारूँ, ऐसा अध्यवसानभाव होता है वैसा वन्ध्यापुत्र को मारने का
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