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________________ निर्जराधिकार २५७ शार्दूलविक्रीडितछन्द यत्सन्नाशमुपैति तन्न नियतं व्यक्तेति वस्तुस्थिति निं सत्स्वयमेव तत्किल ततस्त्रातं किमस्यापरैः। अस्यात्राणमतो न किञ्चन भवेत्तद्भी: कुतो ज्ञानिनो निश्शङ्कः सततं स्वयं स सहजं ज्ञानं सदा विन्दति।।१५७।। अर्थ- जो सत् स्वरूप है वह नाश को प्राप्त नहीं होता, इस नियम से वस्तु की मर्यादा प्रकट है। ज्ञान सत्स्वरूप है इसलिए वह स्वयं ही रक्षित है। इसके लिए दूसरे पदार्थों से क्या प्रयोजन है? इसकी रक्षा किसी से नहीं हो सकती। इसलिये ज्ञानी पुरुषों को भय कैसे हो सकता है? वह तो निरन्तर निःशङ्क रहता हुआ स्वयं सहज-स्वाभाविक ज्ञान को ही सदा प्राप्त होता है-उसी का अनुभव करता है। ___ भावार्थ- जो सत् है उसका कभी नाश नहीं होता, ऐसी निश्चय से वस्तु-मर्यादा है और ज्ञान जो है सो स्वयं ही सत्स्वरूप है। इसलिये इसकी रक्षा के अर्थ अन्य की आवश्यकता नहीं है। इस ज्ञान की अरक्षा करने में कोई भी वस्तु समर्थ नहीं है। अतएव ज्ञानी जीव को इसकी रक्षा के अर्थ किसी से भी भय नहीं होता है। स्वयं जो अपना सहज ज्ञान है उसी का अनुभव करता है। ज्ञानी के ऐसा निश्चय है कि सत्पदार्थ स्वयं स्वरूप से ही रक्षित है। कोई भी शक्ति इसका अभाव करने में समर्थ नहीं है। अत: इसी भाव को लेकर ज्ञानी के किसी का भय नहीं रहता है। निरन्तर जो अपना स्वाभाविक ज्ञान है उसी का अनुभव करता है। इस काव्य में अरक्षाभय का वर्णन है। ज्ञानी जीव समझता है कि ज्ञान ही मेरा स्वरूप है उसको करने का सामर्थ्य किसी में नहीं है। शरीरादिक परपदार्थ हैंपुद्गलद्रव्य की परिणतियाँ हैं। उनके नाश से मेरे ज्ञानस्वभाव का नाश नहीं होता, इसलिये मुझे अरक्षा का भय नहीं है।।१५७।। शार्दूलविक्रीडितछन्द स्वं रूपं किल वस्तुनोऽस्ति परमा गुप्तिः स्वरूपे न य च्छक्तः कोऽपि परः प्रवेष्टुमकृतं ज्ञानं स्वरूपं च नुः । अस्यागुप्तिरतो न काचन भवेत्तद्भीः कुतो ज्ञानिनो निश्शङ्कः सततं स्वयं स सहजं ज्ञानं सदा विन्दति।।१५८ ।। अर्थ- निश्चय से वस्तु का जो स्वीयरूप है वही उसकी परमगप्ति है क्योंकि स्वीयरूप में कोई भी परपदार्थ प्रवेश करने के लिये समर्थ नहीं है। आत्मा का स्वरूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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