SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्जराधिकार २३७ अलाभ में वे मनुष्य कर्मों से नहीं छूट सकते हैं। इसलिये जो मनुष्य कर्मों से छूटने की इच्छा करते हैं उन्हें मात्र ज्ञान के आलम्बन से इस निश्चित पद को प्राप्त करना चाहिये।।२०५।। आगे यही भाव कलशा द्वारा प्रकट करते हैं द्रुतविलम्बितछन्द पदमिदं ननु कर्मदुरासदं सहजबोधकलासुलभं किल। तत इदं निजबोधकलाबलात् कलयितुं यततां सततं जगत् ।।१४३।। अर्थ-यह पद निश्चय ही कर्म के द्वारा दुष्प्राप्य है और सहजबोध कला-स्वाभाविकज्ञानकला से सुलभ है। इसलिये जगत् इस ज्ञानपद को सहजज्ञानकला के बल प्राप्त करने का निरन्तर यत्न करे। भावार्थ-यह ज्ञानरूप आत्मपद केवल क्रियाकाण्ड से सुलभ नहीं है किन्तु स्वाभाविक ज्ञान की कला से सुलभ है। यहाँ ज्ञान के साथ 'सहज' विशेषण दिया है। उससे यह सिद्ध होता है कि मात्र द्रव्यश्रुत के ज्ञान से भी उसकी प्राप्ति सुलभ नहीं है, क्योंकि ग्यारह अंग और नौ पूर्वका पाठी होकर भी यह जीव अनन्त संसार का पात्र बना रहता है। यहां आवश्यकता मोहजन्य विकार से रहित आत्मज्ञान की है। प्रारम्भ में वह आत्मज्ञान क्षायोपशमिक अवस्था में कलारूप ही होता है। परन्तु वह कलारूप आत्मज्ञान भी इस नीव को अन्तर्मुहूर्त के अनन्तर केवलज्ञान प्राप्त कराने की सामर्थ्य रखता है। जिसे केवलज्ञान प्राप्त हो गया वह नियम से अन्तर्महर्त में या अधिक-से-अधिक देशोन कोटिवर्ष पूर्व में समस्त कर्मों से मोक्ष को प्राप्त करता है।।१४३।। यही बात फिर भी कहते हैं एदह्मि रदो णिच्चं संतुट्ठो होहि णिच्चमेदसि। एदेण होहि तित्तो होहदि तुह उत्तमं सोक्खं।।२०६।। अर्थ-इस ज्ञान में ही नित्य रत होओ, इसी ज्ञान में नित्य संतुष्ट होओ, इसी ज्ञान से तृप्त होओ, ऐसा करने से ही तुझे उत्तम सुख होगा। विशेषार्थ-जितना ज्ञान है उतना ही तो आत्मा है अर्थात् ज्ञानादिगुणों का अविष्वग्भावरूप जो विलक्षण सम्बन्ध है वही आत्मा है, इस प्रकार निश्चय कर शुद्ध For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy