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________________ निर्जराधिकार विशेषार्थ - कर्मोदय के रस से जायमान जो ये नानाप्रकार के भाव हैं वे मेरे स्वभाव नहीं हैं। मै तो एक टङ्कोत्कीर्ण ज्ञायक स्वभाववाला हूँ । सम्यग्दृष्टि जीव को ऐसी श्रद्धा होती है कि यह जो ज्ञायकभाव है वह तो मेरा स्व है और उसके साथ मिल रहे रागादिकभाव पर हैं । । १९८ ।। २२९ — सम्यग्दृष्टि जीव विशेषरूप से स्व और पर को इस प्रकार जानता हैपुग्गलकम्मं रागो तस्स विवागोदओ हवदि एसो । ण दु एस मज्झ भावो जाणगभावो हु अहमिक्को ।। १९९ ।। अर्थ-राग नाम का पुद्गलकर्म है। उसके विपाकोदय में यह रागपरिणाम आत्मा का होता है, सो यह मेरा स्वभाव नहीं है । मैं तो केवल ज्ञायकभाव रूप हूँ। विशेषार्थ-निश्चय से रागनामक पुद्गलकर्म की प्रकृति है । उसका जब उदयकाल आता है तब आत्मा में रागभाव की उत्पत्ति होती है। किन्तु वह मेरा स्वभाव नहीं है क्योंकि मैं तो एक टङ्कोत्कीर्ण ज्ञायकस्वभाव वाला हूँ। इसी प्रकार रागपद का परिवर्तन कर द्वेष, मोह, क्रोध, मान, माया, लोभ, कर्म, नोकर्म, मन, वचन, काय, श्रवण, नेत्र, नासिका, जिह्वा और स्पर्शन इन सोलह सूत्रों की व्याख्या करनी चाहिये। इसी पद्धति से और भी ऊहापोह करना चाहिये । इस प्रकार सम्यग्दृष्टि अपने को जानता हुआ और पर को त्यागता हुआ नियम से ज्ञान और वैराग्य से सम्पन्न होता है । । १९९ ।। आगे यही भाव गाथा में प्रकट करते हैं एवं सम्मद्दिट्ठी अप्पाणं मुणदि जाणयसहावं । उदयं कम्मविवागं य मुअदि तच्चं वियाणंतो । । २०० ।। अर्थ- इसप्रकार सम्यग्दृष्टि जीव आत्मा को ज्ञायकस्वभाव जानता है और तत्त्व को जानता हुआ उदय को कर्मविपाक जानकर छोड़ता है। विशेषार्थ - इसप्रकार सम्यग्दृष्टि जीव सामान्य और विशेषरूप के द्वारा परस्वभावरूप समस्तभावों से पृथक् टङ्कोत्कीर्ण एक ज्ञायकस्वभाव को ही आत्मा का तत्त्व जानता है और उस तरह तत्त्व को जानता हुआ स्वभाव के उपादान और परभाव के अपोहन (त्याग) से उत्पन्न हुए अपने वस्तुत्व का प्रसार करता हुआ कर्मोदय के विपाक से जायमान सभी भावों को छोड़ता है। इसलिए यह नियम से ज्ञान और वैराग्य से सम्पन्न होता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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