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________________ आस्रवाधिकार २११ अर्थ- यद्यपि पहले के बँधे हुए द्रव्यप्रत्यय समय का अनुसरण करते हुए अर्थात् उदयावली में आने के काल की प्रतीक्षा करते हुए सत्ता को नहीं छोड़ते हैं तथापि समस्त रागद्वेषमोह का अभाव हो जाने से अथवा उनके स्वामित्व का अभिप्राय निकल जाने से ज्ञानी जीव के कभी कर्मबन्ध नहीं होता।।११८।। अनुष्टुप्छन्द रागद्वेषविमोहानां ज्ञानिनो यदसंभवः। तत एव न बन्धोऽस्य ते हि बन्धस्य कारणम्।।११९ ।। अर्थ-क्योंकि ज्ञानी जीव के राग, द्वेष और मोह का अभाव रहता है, इसीलिये उसके बन्ध नहीं होता। वास्तव में बन्ध के कारण राग, द्वेष और मोह ही हैं।।११९।। आगे यही भाव गाथाओं में प्रकट करते हैं रागो दोसो मोहो य आसवा णत्थि दम्मदिहिस्स। तह्या आसवभावेण विणा हेदू ण पच्चया होति ।।१७७।। हेदू चदुव्वियप्पो अट्ठवियप्पस्स कारणं भणिदं । तेसि पि य रागादी तेसिमभावे ण बझंति।।१७८।। अर्थ-सम्यग्दृष्टि जीव के रागद्वेषमोह रूप आस्रव नहीं हैं, इसलिये आस्रवभाव के अभाव में द्रव्यप्रत्यय बन्ध के कारण नहीं हैं। वे मिथ्यात्वादि चार प्रत्यय आठ प्रकार के कर्मों के कारण कहे गये है और उन प्रत्ययों के भी कारण रागादिक कहे गये हैं। सम्यग्दृष्टि के रागादि परिणामों के अभाव में कर्मबन्ध नहीं होता है। विशेषार्थ-सम्यग्दृष्टि जीव के रागद्वेषमोहभाव नहीं होते हैं। अन्यथा सम्यग्दृष्टिपन ही नही हो सकता। उन रागद्वेषमोह के अभाव में द्रव्य प्रत्यय पुद्गलकर्म की हेतुता को नहीं धारण करते हैं क्योंकि द्रव्यप्रत्यययों में जो पुद्गलकर्म की हेतुता है वह रागादिभाव हेतक है अर्थात रागादिक भावों के रहते हए ही द्रव्यप्रत्यय नवीन पुद्गलकर्मों का बन्ध करते हैं। क्योंकि हेतु के अभाव में कार्य नहीं होता, ऐसी प्रतीति आबाल-गोपाल प्रसिद्ध है। अत: ज्ञानी जीव के बन्ध नहीं है। यहाँ चर्चा यह चल रही है कि जब सम्यग्दृष्टि जीव के सत्ता में द्रव्यप्रत्यय विद्यमान हैं तब वह बन्धरहित कैसे होता है? इसके उत्तर में कहा गया है कि द्रव्यप्रत्यय सत्ता में रहने मात्र से बन्ध के कारण नहीं होते, किन्तु उदयावली में आनेपर जब रागादिक भाव होते हैं तब उनके द्वारा वे बन्ध के कारण होते हैं। इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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