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________________ पुण्यपापाधिकार १९५ सफेदी वस्त्र में ही रहती है उसी तरह आत्मा के सम्यक्त्वादि गुण में आत्मा रहते हैं। जिस प्रकार मैल का सम्बन्ध दूर हो जाने पर वस्त्र की सफेदी स्वयं प्रकट हो जाती है, कहीं बाहर से नहीं आती, उसी प्रकार आच्छादक अथवा विकार उत्पन्न करनेवाले कर्मों का सम्बन्ध दूर होने पर सम्यक्त्वादि गुण स्वयं प्रकट हो जाते हैं, कहीं बाहर से नहीं आते।।१५७।।१५८।।१५९।। अब कर्म स्वयं बन्धरूप है, यह सिद्ध करते हैंसो सव्वणाणदरिसी कम्मरएण णियेणवच्छण्णो। संसारसमावण्णो ण विजाणादि सव्वदो सव्वं ।।१६०।। अर्थ- वह आत्मा स्वभाव से सबको जानने वाला और देखने वाला है तो भी अपने शुभाशुभ कर्मरूपी रज से आच्छादित हो रहा है, अतएव संसार अवस्था को प्राप्त हुआ सबको सब रूप से नहीं जानता है।। विशेषार्थ- यद्यपि आत्मा का स्वभाव ऐसा है कि वह समस्त पदार्थों को सामान्य और विशेषरूप से देख-जान सकता है तथापि अनादिकाल से स्वकीय आत्मा के अपराध अर्थात् रागादि परिणति से प्रवर्तमान कर्मरूपी मल से आच्छादित होता हुआ बन्धदशा का अनुभव कर रहा है और उस बन्धदशा में सबरूप से अपने सम्पूर्णरूप को नहीं जानता हुआ निरन्तर अज्ञानी होकर ही रहता है, इससे निश्चय हुआ कि शुभाशुभ कर्म ही स्वयं बन्धरूप हैं, अत: त्यागने योग्य हैं। यहाँ कोई यह आशंका करे कि जब एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ कर नहीं सकता तब कर्मरूपी रज ने सर्वदर्शी आत्मा को अज्ञानी कैसे बना दिया? तो उसका उत्तर यह है कि 'एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ कर नहीं सकता' इसका इतना ही अर्थ है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप परिणमन नहीं कर सकता, निमित्त-नैमित्तिकभाव की दृष्टि में एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के विभावपरिणमन में निमित्त अवश्य होता है, इसका निषेध नहीं है। अब कर्म मोक्ष के हेतु सम्यग्दर्शन, ज्ञान चारित्र का आच्छादन करने वाले हैं, यह दिखाते हैं सम्मत्त-पडिणिबद्धं मिच्छत्तं जिणवरेहिं परिकहियं। तस्सोदयेण जीवो मिच्छादिट्ठि त्ति णायव्वो।।१६१।। णाणस्स पडिणिबद्धं अण्णाणं जिणवरेहिं परिकहियं। तस्सोदयेण जीवो अण्णाणी होदि णायव्वो ।।१६२।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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