________________
१९४
समयसार
जैसे वस्त्र की सफेदी मल के सम्बन्धविशेष से नष्ट हो जाती है वैसे ही अज्ञानरूपी मल के साथ सम्बन्ध होने पर जीव का वास्तविक ज्ञान नष्ट हो जाता है अर्थात् आच्छादित हो जाता है, यह निश्चय से जानना चाहिये।
और जिस तरह वस्त्र की शक्लता मल के सम्बन्धविशेष से नाशभाव को प्राप्त हो जाती है उसी तरह कषायरूपी मल के साथ सम्बन्ध होने से चारित्रगुण भी नष्ट हो जाता है अर्थात् प्रकट नहीं होता है, ऐसा जानना चाहिये।
विशेषार्थ- ज्ञान का जो सम्यक्त्व है वह मोक्षकारणरूप स्वभाव है। वह, जैसे परभावभूत मैल के साथ सम्बद्ध होने से वस्त्र का श्वेतभाव आच्छादित हो जाता है, वैसे ही मिथ्यात्वरूप मैल से आच्छादित होने के कारण तिरोभूत रहता है। इसी तरह ज्ञान का जो ज्ञान है अर्थात् उसमें अज्ञानभाव नहीं है वह मोक्ष का कारण है। किन्तु मैल के सम्बन्ध से जैसे वस्त्र की शुक्लता आच्छादित रहती है वैसे ही अज्ञानमल के साथ सम्बन्ध होने से उसकी मोक्षकारणता व्यक्त नहीं होती। इसी प्रकार ज्ञान के रागादिनिवृत्तिरूप जो चारित्र है वह मोक्ष का कारण है। परन्तु जैसे मलिनता का सम्बन्ध होने से वस्त्र की शुक्लता का वर्तमान में अभाव है वैसे ही ज्ञान में जो चरित्र है वह कषायमल के द्वारा आच्छादित होने से तिरोभूत हो रहा है। इसीलिये मोक्ष के कारणों का तिरोधान करने से कर्म का प्रतिषेध किया गया है।
निश्चयनय से तो गुण-गुणी में भेद नहीं होता, पर व्यवहारनय गुण-गुणी में भेदकल्पना करता है, अत: व्यवहारनय की दृष्टि में आत्मा गणी है और श्रद्धा ज्ञान तथा चारित्र ये तीन उसके गुण हैं। श्रद्धागुण का जो स्वभावरूप परिणमन है वह सम्यग्दर्शन है और विभावरूप परिणमन मिथ्यादर्शन है। ज्ञानगुण का जो स्वभावरूप अर्थात् ज्ञानरूप परिणमन है वह सम्यग्ज्ञान है और विभाव रूप परिणमन अज्ञान अथवा मिथ्याज्ञान है। इसी तरह चारित्रगुण का जो स्वभावरूप अर्थात् वीतरागतारूप परिणमन है वह सम्यक्चारित्र है और रागादिरूप विभाव परिणमन अचारित्र अथवा मिथ्याचारित्र है। यहाँ इन गुणों के विभावरूप परिणमन करने का कारण निमित्त की प्रधानता से कर्म को बतलाया है। जिस प्रकार मैल के सम्बन्ध से वस्त्र की सफेदी आच्छादित रहती है और मैल के दूर हो जाने पर प्रकट हो जाती है उसी प्रकार मिथ्यात्व, अज्ञान और कषायरूपी मैल के सम्बन्ध से श्रद्धागुण का सम्यक्त्वरूप परिणमन, ज्ञानगुण का ज्ञानरूप परिणमन और चारित्रगुण का चारित्ररूप परिणमन आच्छादित रहता है और उन मिथ्यात्व आदि मैलों का सम्बन्ध दूर हो जाने पर उनका यथार्थ परिणमन प्रकट हो जाता है। जिस तरह वस्त्र की
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org