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________________ १६८ समयसार अर्थ- चेतन-आत्मा के विषय में एक नय का कहना है कि वह कर्मों से बद्ध है और दूसरे नय का कहना है कि वह कर्मों से बद्ध नहीं है। इस तरह दो नयों के ये दो पक्ष हैं। जो इस पद्धति का अनुसरण करते हैं अर्थात् इन दोनों नयों में अन्यतर नय के पक्षपाती हैं वे तत्त्वज्ञानी नहीं हैं, जो तत्त्ववेदी हैं वे उक्त पक्षपात से शून्य हैं। उनके सिद्धान्त में तो चेतन-आत्मा चिन्मात्र ही है।।७०।। एकस्य मूढो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।।७१।। अर्थ- एक नय का तो यह पक्ष है कि आत्मा मोही है और दूसरे नय का कहना है कि आत्मा मोही नहीं है। इस तरह एक ही आत्मा में मोही और अमोही ये दो नयों के दो पक्षपात हैं। जिसके पक्षपात नहीं, वह तत्त्वज्ञानी है तथा उसके सिद्धान्त में चैतन्यस्वरूप आत्मा नित्य ही निश्चय से चिन्मात्र ही है।।७१।। एकस्य रक्तो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।।७२।। अर्थ- एक नय का पक्ष है कि आत्मा रागी है और दूसरे नय का कहना है कि आत्मा रागी नहीं है। इस तरह एक ही आत्मा के विषय में दो नयों के दो पक्षपात हैं। परन्तु जो पक्षपात से रहित है वह तत्त्वज्ञानी है, उसके सिद्धान्त में चैतन्यस्वरूप आत्मा निश्चय से नित्य ही चिन्मात्र ही है।।७२।। एकस्य द्विष्टो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।।७३।। अर्थ- एक पक्ष का कहना है कि आत्मा द्वेषी है और इसके विपरीत पक्ष का कहना है कि आत्मा द्वेषी नहीं है। इस तरह एक ही आत्मा में दो के दो पक्षपात हैं। और जिसका नयपक्षपात मिट गया वह तत्त्ववेदी-तत्त्वज्ञानी है, उसके सिद्धान्त में आत्मा नित्य ही चिन्मात्र ही है।।७३।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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