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____कर्तृ-कर्माधिकार एकस्स दु परिणामो जायदि जीवस्स रागामादीहिं । ता कम्मोदयहेदूहिं विणा जीवस्स परिणामो ॥१३८।।
(युग्मम्) अर्थ- यदि जीव के रागादिक परिणाम कर्म के साथ ही होते हैं ऐसा माना जावे, तो ऐसा मानने से जीव और कर्म दोनों ही रागादिक भावों को प्राप्त हो जावेंगे। इससे यह सिद्ध हुआ कि रागादिरूप से एक जीव का ही परिणाम होता है अर्थात् केवल एक जीव ही रागादिक परिणामों के द्वारा परिणमन करता है और वह परिणाम कर्मोदयरूप हेतु के बिना केवल जीव का ही परिणाम है।
विशेषार्थ- रागादिक अज्ञान भावों के होने में विपच्यमान (उदयागत) मोहादिकर्म ही कारण हैं, इसलिए उनके साथ ही जीव का रागादिक परिणाम होता है अर्थात् मोहादिक कर्म और जीव की मिश्रितावस्था ही रागादिरूप परिणत हो जाती है, यदि ऐसा माना जावे तो जैसे चूना और हल्दी के मिलाप से दोनों का एक लाल रङ्गरूप परिणमन हो जाता है, ऐसे ही मोहादिक कर्म और जीव के मिलाप से दोनों का रागादिरूप परिणाम होता है ऐसा मानना पड़ेगा, यह एक दुर्निवार आपत्ति होगी। अत: उस आपत्ति के वारण के लिए केवल जीव का ही रागादिक परिणाम होता है, ऐसा मानना ही श्रेयस्कर है। इससे यह सिद्ध हआ कि जीव का रागादिरूप परिणाम अपने हेतुभूत पुद्गलकर्म के विपाक से पृथक् ही है।
पहले निमित्त की प्रधानता से कहा था कि जीव के रागादिकभाव पुद्गलकर्म के उदय से होने के कारण पद्गलरूप हैं। यहाँ उपादान की प्रधानता से कहा गया है कि रागादिकभाव जीव के ही परिणाम हैं, परन्तु पुद्गलकर्म के उदय से जायमान होने के कारण जीव के स्वभाव नहीं हैं किन्तु विभावरूप हैं।।१३७-१३८।।
आगे पुद्गलद्रव्य का परिणाम भी जीव से पृथक् ही है, यह कहते हैंजह जीवेण सह च्चिय पुग्गलदव्वस्स कम्मपरिणामो। एवं पुग्गल जीवा हु दो वि कम्मत्तमावण्णा।।१३९।। एकस्स दु परिणामो पुग्गलदव्वस्स कम्मभावेण । ता जीवभावहेदूहिं विणा कम्मस्स परिणामो।।१४०।।
(युग्मम्) अर्थ- यदि पुद्गलद्रव्य का कर्मरूप परिणाम जीव के साथ ही होता है, ऐसा माना जावे तो ऐसा मानने से पुद्गल और जीव दोनों ही कर्मभाव को प्राप्त हुए,
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