SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ समयसार अब पुद्गलद्रव्य परिणमनशील है, यह सांख्यमत के अनुयायी शिष्य के प्रति कहते हैं जीवे ण सयं बद्धं ण परिणमदि कम्मभावेण । जइ पुग्गलदव्वमिणं अप्परिणामी तदा होदि ।।११६।। कम्मइयवग्गणासु य अपरिणमंतीसु कम्मभावेण। संसारस्स अभावो पसज्जदे संख-समओ वा ।।११७।। जीवो परिणामयदे पुग्गलदव्वाणि कम्मभावेण । ते सयमपरिणमंते कहं णु परिणामयदि चेदा।।११८।। अह सयमेव हि परिणमदि कम्मभावेण पुग्गलं दव्वं। जीवो परिणामयदे कम्मं कम्मत्तमिदि मिच्छा ।।११९।। णियमा कम्मपरिणदं कम्मं चि य होदि पुग्गलं दव्वं। तह तं णाणावरणाइपरिणदं मुणसु तच्चेव।।१२०।। (पञ्चकम्) अर्थ- यह पुद्गलद्रव्य जीव के साथ न तो स्वयं बँधा है और न स्वयं कर्मभाव से परिणमन करता है। यदि ऐसा माना जाय तो वह अपरिणामी हो जावेगा तथा जब कार्मण वर्गणाएँ कर्मरूप से परिणमन नहीं करेंगी तब संसार का अभाव हो जायगा अथवा सांख्यमत का प्रसङ्ग आ जावेगा। इस दोष का निवारण करने के लिये यदि ऐसा माना जावे कि जीव पुद्गलद्रव्यों को कर्मरूप से परिणमाता है तो यहाँ पर दो प्रश्न उठते हैं-पुद्गलद्रव्य स्वयं कर्मरूप परिणमन करनेवाले को कर्मरूप परिणमाता है? या स्वयं कर्मरूप नहीं परिणमन करनेवालों को परिणमाता है? यदि वे स्वयं नहीं परिणमन करनेवाले हैं तो आत्मा उन्हें कैसे परिणमन करा सकेगा? और यदि वे स्वयं परिणमते हैं तो जीव उन्हें कर्मभावरूप परिणमाता है, यह कहना अलीक है। अत: सिद्ध हुआ कि पुद्गलद्रव्य ही कर्मरूप परिणत होता हुआ नियम से कर्मरूप होता है तथा वही ज्ञानावरणादिरूप परिणत होता है, ऐसा जानो। विशेषार्थ- पुद्गलद्रव्य जीव के साथ अपने आप बन्ध-अवस्थारूप नहीं है, यदि ऐसा माना जावे तो ऐसा मानने में वह पुद्गलद्रव्य अपरिणामी हो जावेगा और अपरिणामी होने पर संसार का अभाव हो जावेगा। यदि ऐसा माना जावे कि जीवद्रव्य, पद्गलद्रव्य को कर्मभाव से परिणमन कराता है क्योंकि ऐसा मानने से न तो संसार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy