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________________ ११४ जिस तरह सूर्योदय और तमोनिवृत्ति इनमें कालभेद नहीं है । इसी तरह सम्यग्ज्ञान और आस्रवनिवृत्ति इनमें कालभेद नहीं है। इसका भाव यह है कि गुणस्थान परिपाटी के अनुसार जैसे-जैसे आत्मा गुणस्थानों को प्राप्त करता है वैसे-वैसे ये मिथ्यात्वादि आस्रव निवृत्त होते जाते हैं । । ७४ ।। अब इसी भाव को श्री अमृतचन्द्र स्वामी कलशा में प्रकट करते हैं समयसार शार्दूलविक्रीडितछन्द इत्येवं विरचय्य सम्प्रति परद्रव्यान्निवृत्तिं परां स्वं विज्ञानघनस्वभावमभयादास्तिघ्नुवानः परम् । अज्ञानोत्थितकर्तृकर्मकलनात् क्लेशान्निवृत्तः स्वयं ज्ञानीभूत इतश्चकास्ति जगतः साक्षी पुराणः पुमान् ।।४८।। अर्थ- इस प्रकार यह पुराण पुरुष - अनादि सिद्ध आत्मा जब परद्रव्य से पूर्ण निवृत्ति कर अतिशय उत्कृष्ट अपने विज्ञानघनस्वभाव का निर्भयतापूर्वक आश्रय लेता है तब अज्ञान से उत्थित कर्तृकर्मभाव से उत्पन्न होनेवाले क्लेश से स्वयं छूट जाता है और तदनन्तर एक ज्ञानस्वरूप होकर जगत् का साक्षात्कार करता हुआ प्रकाशमान होता है। Jain Education International भावार्थ - इस प्रकार जब आत्मा इन आस्रवों के स्वरूप को समीचीन रूप से जान लेता है तब परपदार्थों से एक ही बार में अपनी प्रवृत्ति को निवृत्त कर लेता है और विज्ञानघनस्वरूप जो अपना स्वभाव है केवल उसे ही निर्भयता से अङ्गीकृत करता है। उस समय अज्ञान से उत्पन्न होनेवाले कर्तृ-कर्म के व्यवहार से जो नाना दुःख उत्पन्न होते हैं उनसे स्वयं निवृत्त हो जाता है और इससे आगामी काल में स्वयं ज्ञानस्वरूप होकर जगत् का ज्ञाता - दृष्टा बनकर प्रकाशमान रहता है । । ४८ । । आगे ज्ञानीभूत आत्मा कैसे जाना जाता है, यह कहते हैं कम्मस्स य परिणामं णोकम्मस्स य तहेव परिणामं । ण करेइ एयमादा जो जाणदि सो हवदि णाणी ।। ७५ ।। अर्थ- जो आत्मा कर्म के परिणाम को और इसी तरह नोकर्म के परिणाम को नहीं करता है किन्तु जानता है वह ज्ञानी है। विशेषार्थ - निश्चयकर मोह, राग, द्वेष, सुख, दुःख आदि रूप से अन्तरङ्ग में उत्पन्न होनेवाले कर्म के परिणाम और स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, शब्द, बन्ध, संस्थान, स्थौल्य, सौक्ष्म्य आदि रूप से बाह्य में प्रकट होनेवाले नोकर्म के परिणाम, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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