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________________ जीवाजीवाधिकार पंथे मुस्संतं पस्सिदूण लोगा भणंति ववहारी। मुस्सदि एसो पंथो ण य पंथो मुस्सदे कोई ॥५८।। तह जीवे कम्माणं णोकम्माणं च पस्सिदुं वण्णं। जीवस्स एस वण्णो जिणेहिं ववहारदो उत्तो।।५९।। गंध-रस-फास-रूवा देहो संठाणमाइया जे य। सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति ।।६०।। अर्थ- जिस प्रकार मार्ग में किसी सार्थ-यात्रीसंघ को लटता देखकर व्यवहारी लोग कहते हैं कि यह मार्ग लुटता है परन्तु परमार्थ से कोई मार्ग नहीं लुटता, इसी प्रकार जीव में कर्म और नोकर्म के वर्ण को देखकर 'यह वर्ण जीव का है' ऐसा व्यवहार से जिनेन्द्र भगवान् ने कहा है। इस तरह गन्ध, रस, स्पर्श, रूप, शरीर तथा संस्थान आदिक जितने हैं वे सब व्यवहार से जीव के हैं, ऐसा निश्चय के देखने वाले कहते हैं। विशेषार्थ- जैसे मार्ग में जाने वाले वनजारों के समूह को लुटता देखकर उपचार से लोग ऐसा कह देते हैं कि यह मार्ग लुटता है। यदि निश्चय से देखा जावे तो मार्ग आकाश के विशेष प्रदेशों में स्थित पृथिवी आदि का परिणमनविशेष है उसे कोई लूटता नहीं। ऐसे ही जीव में अनादि काल से कर्म और नोकर्म का सम्बन्ध है, उस कर्म और नोकर्म के वर्ण को देखकर 'यह जीव का वर्ण है' ऐसा भगवान् ने व्यवहार से कहा है। परन्तु निश्चय से जीव अमूर्तस्वभाव वाला तथा उपयोग गुण से अधिक है, अत: उसका कोई भी वर्ण नहीं है, यही कहने में आता है। इस तरह गन्ध, रस, स्पर्श, रूप, शरीर, संस्थान, संहनन, राग, द्वेष, मोह, प्रत्यय, नोकर्म, वर्ग, वर्गणा, स्पर्धक, अध्यात्मस्थान, अनुभागस्थान, योगस्थान, उदयस्थान, मार्गणास्थान, स्थितिबंधस्थान, संक्लेशस्थान, विशुद्धिस्थान, संयमलब्धिस्थान, जीवस्थान और गुणस्थान ये सब व्यवहारनय से जीव के हैं, ऐसा अर्हन्त भगवान् ने यद्यपि कहा है तो भी निश्चयनय से जीव नित्य ही अमूर्तस्वभाववाला तथा उपयोग गुण से अधिक है, अत: ये सभी भाव जीव के नहीं हैं, क्योंकि जीव के साथ इनका तादात्म्य सम्बन्ध नहीं है किन्तु संयोग सम्बन्ध है जो कि दो द्रव्यों में ही होता है।।५८, ५९, ६०।। आगे जीव का वर्णादि के साथ तादात्म्य सम्बन्ध क्यों नहीं है ? इसी का उत्तर देते हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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