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जीवाजीवाधिकार
एकत्व का अध्यास-मिथ्या आरोप होने पर विशुद्ध चैतन्य परिणाम से भिन्न जो अध्यात्म स्थान हैं वे सब जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं और भिन्न-भिन्न प्रकृतियों के रसपरिणामरूप लक्षण से युक्त जो अनुभागस्थान हैं वे भी जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं।
काय, वचन और मनोवर्गणा के निमित्त से आत्मप्रदेशों में होनेवाले परिस्पन्द को योगस्थान कहते हैं। ये सब योगस्थान जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं। भिन्न-भिन्न प्रकृतियों के परिणामरूप जो बन्धस्थान हैं वे सब जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गल द्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं। अपना फल प्रदान करने में समर्थ कर्मों की अवस्थारूप जो उदयस्थान हैं वे सब जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम के होने के अनुभूति से भिन्न हैं। और गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञित्व और के भेद से जो चौदह प्रकार के मार्गाणास्थान हैं वे सब जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं।
_ भिन्न-भिन्न स्वभाव वाली कर्मप्रकृतियों का कालान्तर में स्थित रह सकना जिनका लक्षण है ऐसे स्थितिबन्धान जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं। कषाय के उदय की तीव्रतारूप लक्षण से युक्त जो संक्लेशस्थान हैं वे सब जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं। कषाय के उदय की मन्दतारूप लक्षण से सहित जो विशुद्धिस्थान हैं वे सब भी जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं और चारित्रमोह के विपाक की क्रम से निवृत्ति होना ही जिनका लक्षण है ऐसे सब संयमलब्धिस्थान जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं।
बादर एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संज्ञी पञ्चेन्द्रिय और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय इन सात के पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से चौदह जीवस्थान होते हैं। इन्हें ही जीवसमास कहते हैं, ये सब जीव नहीं हैं, क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं तथा मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यक्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरणोपशमक-क्षपक (उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणीवाला अपूर्वकरण), अनिवृत्तिबादरसाम्परायोपशमक-क्षपक (उपशमश्रेणी और
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