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समयसार
ही अनुभव ज्ञान द्वारा होता है। जो सुगन्ध और दुर्गन्ध है वह भी जीव नहीं है क्योंकि पुद्गलद्रव्य का परिणाम है, अतएव अनुभूति से भिन्न है। कटुक, कषाय, तिक्त, अम्ल, मधुररूप रस का जो परिणमन हो रहा है वह सब परिणमन जीव नहीं है क्योंकि वह पुद्गलद्रव्य का परिणाम है। अत: अनुभूति से भिन्न है। जो स्निग्ध, रूक्ष, शीत, उष्ण, गुरु, लघु, मृदु, कठिन स्पर्श हैं वे सब जीव नहीं हैं क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम हैं, अत: जीव की अनुभूति से भिन्न हैं। जो स्पर्शादि सामान्यपरिणाम मात्र रूप है वह भी जीवद्रव्य नहीं है, क्योंकि पुद्गलद्रव्य का परिणाम है अतएव अनुभूति से भिन्न है। जो औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस, कार्मण शरीर हैं ये सब जीव नहीं हैं क्योंकि इनका उत्पाद पुद्गलद्रव्य से होता है, अतएव आत्मा की अनुभूति से भिनन हैं। जो समचतुरस्र, न्यग्रोध, परिमण्डल, स्वाती, कुब्जक, वामन, हुण्डक संस्थान हैं वे सब जीव नहीं हैं, क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम हैं, अतएव अनुभूति से भिन्न हैं। जो वज्रर्षभनाराच, वज्रनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच, कीलक और स्फाटिक संहनन हैं वे सब जीव नहीं है, क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणामविशेष हैं, अत: अनुभूति से भिन्न हैं।
जो प्रीतिरूप परिणाम है वह राग है। वह भी जीव नहीं है क्योंकि पौद्गलिक मोहकर्म के उदय से जायमान होने से पुद्गल का परिणाम है, अतएव अनुभूति से भिन्न है। अप्रीतिरूप जो भाव है वह द्वेष है। वह भी जीव नहीं है क्योंकि द्वेषरूप मोहप्रकृति के उदय से होता है, अतएव पुद्गल है और अनुभूति से भिन्न है। तत्त्व की जो अप्रतीतिरूप जो मोह है वह भी जीव नहीं है, क्योंकि पुद्गलात्मक मिथ्यात्वकर्म के उदय से जायमान है, अत: अनुभूति से भिन्न है। मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योगरूप जो प्रत्यय हैं वे ही कर्मबन्ध के निमित्त हैं अतएव इन्हें आस्रव कहते हैं। ये जो मिथ्यात्व आदि प्रत्यय हैं वे जीव नहीं हैं, क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणामविशेष हैं, अत: अनुभूति से भिन्न हैं। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तरायरूप जो आठ कर्म हैं वे भी जीव नहीं हैं क्योंकि ये सब पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने से अनुभूति से भिन्न हैं तथा छह पर्याप्ति और तीन शरीर के योग्य वस्तुभूत जो नोकर्म हैं वे जीव नहीं हैं, क्योंकि पुद्गलद्रव्य के परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न हैं। ____ अविभागप्रतिच्छेदों के धारक कर्मपरमाणुओं का नाम वर्ग है। वह वर्ग भी जीव नहीं है क्योंकि पुद्गलद्रव्यात्मक होने के कारण अनभूति से भिन्न है। वर्गों के समुदायरूप जो वर्गणा है वह जीव नहीं है क्योंकि पुद्गलद्रव्य का परिणाम होने से अनुभूति से भिन्न है। वर्गणाओं का समुदायरूप जो स्पर्द्धक है वह भी जीव नहीं है क्योंकि पुद्गलद्रव्य का परिणाम होने के कारण अनुभूति से भिन्न है। स्वपर में
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