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जीवाजीवाधिकार
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जीवस्स णत्थि रागो ण वि दोसो णेव विज्जदे मोहो। णो पच्चया ण कम्मं णोकम्मं चावि से णत्थि ।।५१।। जीवस्स णत्थि वग्गो ण वग्गणा णेव फड्डया केई । णो अज्झप्पट्ठाणा णेव य अणुभायठाणाणि ।।५२।। जीवस्स णत्थि केई जोयट्ठाणा ण बंधठाणा वा । णेव य उदयट्ठाणा ण मग्गणट्ठाणया केई ।।५३।। णो ठिदिबंधट्ठाणा जीवस्स ण संकिलेसठाणा वा । णेव विसोहिट्ठाणा णो संजमलद्धिठाणा वा ।।५४।। णेव य जीवट्ठाणा ण गुणट्ठाणा य अत्थि जीवस्स। जेण दु एदे सव्वे पुग्गलदव्वस्स परिणामा ।।५।।
(षट्कम्) अर्थ- जीवके न वर्ण है, न गन्ध है, न रस है, न स्पर्श है, न रूप है, न शरीर है, न संस्थान है, न संहनन हैं। जीव के न राग है, न द्वेष है, न मोह है, न प्रत्यय (आस्रव) हैं, न नोकर्म हैं। जीव के न वर्ग है, न वर्गणा हैं, न स्पर्धक हैं, न अध्यात्मस्थान हैं, न अनुभागस्थान हैं। जीव के न कोई योगस्थान हैं, न बन्धस्थान हैं, न उदयस्थान हैं, न मार्गणास्थान हैं। जीव के न स्थितिबन्धस्थान है, न संक्लेशस्थान हैं, न विशुद्धिस्थान हैं, न संयमलब्धिस्थान हैं। जीव के न जीवस्थान हैं और न गुणस्थान हैं क्योंकि ये सब पुद्गलद्रव्य के परिणमन हैं।
विशेषार्थ- जो वस्तु जिसका परिणाम होती है, वह उसी रूप होती है, यह नियम है। अत: ये वर्णादिक जब पुद्गल के परिणाम हैं तब पुद्गल के ही होंगे, इन्हें जीव मानना न्यायपथ का अनुसरण नहीं करना है।
जो काला, हरा, पीला, लाल, सफेद वर्ण है वह रूपगण का परिणमन विशेष है। रूपगुण पुद्गल का गुण है अतः ये सब रूपगुण के पर्यायरूप से अभिन्न हैं और रूप पुद्गलद्रव्य का गुण है अत: वह पुद्गल का ही है, जीव का नहीं है, क्योंकि पुद्गलद्रव्य का परिणमनमय होने से वह निज अनुभूति से भिन्न है। इस लिए आत्मा के ज्ञान में रूप भासमान होता है क्योंकि ज्ञेय है। जो ज्ञेय है वह ज्ञान नहीं होता, ज्ञेयनिमित्तिक जो ज्ञान का परिणमन होता है उस परिणमन का ज्ञान के साथ तादात्म्य है, उसी का अनुभव ज्ञान में होता है, किन्तु जो बाह्य ज्ञेय है वह ज्ञान से अत्यन्त भिन्न है उसका अनुभव ज्ञान में नहीं होता, परन्तु मोही जीवों को बाह्य ज्ञेय का
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