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समयसार
एए सव्वे भावा पुग्गलदव्वपरिणामणिप्पण्णा । केवलिजिणेहिं भणिया कह ते जीवो त्ति वुच्चंति ॥ ४४ ॥
अर्थ- ये पूर्व में कहे हुए अध्यवसान आदि सब भाव पुद्गलद्रव्य के परिणाम से निष्पन्न हुए हैं, ऐसा श्रीकेवली जिनेन्द्र ने कहा है, तब वे जीव कैसे कहे जा सकते हैं?
विशेषार्थ - क्योंकि अध्यवसानादिक जितने भाव हैं इन सबको सर्वज्ञ भगवान् ने पुद्गलद्रव्यमय कहा है। अतः ये सब भाव चैतन्यशून्य पुद्गलद्रव्य से भिन्न चैतन्यस्वभाव वाला जो जीवद्रव्य है उसरूप नहीं हो सकते। इस तरह आगम, युक्ति और स्वानुभव से बाधित पक्ष होने के कारण अध्यवसानादिक भावों को जीव मानने वाले जो वादी हैं वे परमार्थवादी नहीं हैं।
‘अध्यवसानादयो भावा न जीवाः' यही इसमें आगम हैं, क्योंकि यह वचन परम्परा से चला आया है तथ इसमें कोई बाधक प्रमाण नहीं है । परम्परा से भी जो वाक्य चला आवे, किन्तु प्रत्यक्षादिक प्रमाण से बाधित हो तो वह प्रमाणकोटि में नहीं आ सकता। यह जो अध्यवसानादिक भाव हैं वे उपयोग की तरह स्थायी नहीं हैं किन्तु मोहादि पौगलिक कर्म प्रकृति के विपाक से आत्मा में एक विभावपरिणति होती है उसी रूप होने से नैमित्तिक हैं, अस्थायी हैं, अत: आत्मा नहीं हैं।
स्वानुभवगर्भा युक्ति भी इसमें है, यही दिखाते हैं - निश्चय से नैसर्गिक रागद्वेष से कलुषित जो अध्यवसान भाव हैं वे जीव नहीं हैं क्योंकि जैसे कालिमा से भिन्न सुवर्ण है ऐसे ही अध्यवसान भावों से भिन्न चैतन्यस्वभाववाला जीव भी भेदज्ञानियों
अनुभव में प्रत्यक्ष आ रहा है। अनाद्यनन्त पर्यायों में परिभ्रमण कराने रूप क्रिया क्रीडा करनेवाला जो कर्म है वह जीव नहीं है क्योंकि कर्म से भिन्न चैतन्यस्वभाव वाले जीव का अनुभव भेदज्ञानियों को स्वयं हो रहा है। निश्चय कर तीव्र-मन्दरूप से भिद्यमान दुःखदायक जो रागरस की संतान है वह भी जीव नहीं है क्योंकि रागादिक से भिन्न चैतन्यस्वभाववाले जीव का अनुभव भेद ज्ञानियों को होता है। इसमें संदेह को स्थान नहीं है क्योंकि सब प्रमाणों से अनुभव प्रमाण की बलवत्ता आबालगोपाल विदित है। इसी तरह यह जो कहा था कि नई पुरानी अवस्था वाला जो शरीर है वही जीव है सो निश्चय से विचार करने पर असंगत ठहरता है क्योंकि शरीर से भिन्न चैतन्य स्वभाव वाला जीव तत्त्व ज्ञानियों के ज्ञान में आ रहा है। पुण्य पापरूप संसार पर आक्रमण करनेवाला कर्म का विपाक ही जीव है, यह कहना ठीक नहीं है, शुभ -अशुभ भावों से भिन्न चैतन्यस्वभाववाला जीव भेदज्ञानियों के प्रत्यक्ष ज्ञान
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