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समयसार
सर्वप्रथम पहल की और जिनकी भावना इसे शीघ्र प्रकाश में लाने की रही, मूल ग्रन्थ की फोटो कापी न कराते एवं प्रकाशन के लिए आगे न आते, तो शायद यह अभी प्रकाश में न आ पाता । अतः हम इन दोनों ही महानुभावों को हृदय से धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकते।
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आदरणीय पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री, उपाध्यक्ष वर्णी - ग्रन्थमाला ने हमारे अनुरोध पर पाण्डुलिपि का वाचन किया और अपने मूल्यवान् परामर्श दिये और प्राक्कथन लिख देने की कृपा की, अतः हम उनके भी आभारी हैं । बन्धुवर पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य ने पूज्य वर्णीजी का एक और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सम्पादित कर ग्रन्थमाला को दिया और शतश: पाठकों को लाभान्वित किया, एतदर्थ उन्हें हार्दिक धन्यवाद है।
ग्रन्थ के सुन्दर और शीघ्र मुद्रण के लिए प्रिय बाबूलालजी फागुल्ल संचालक महावीर प्रेस और उनका परिकर भी धन्यवादार्ह है।
भाद्रशुक्ल ५ वी०नि० २४९५
१५-९-६९
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(डॉ०) दरबारी लाल कोठिया मन्त्री
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