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प्रकाशकीय (द्वितीय संस्करण)
हमें हर्ष है कि पूज्य वर्णीजी (मुनि गणेश कीर्ति) महाराज के इस समयसारप्रवचन को पाठकों ने अत्यधिक पसन्द किया। वीर-निर्वाण संवत् २४९५ में इसका प्रथम संस्करण निकला था और वह एक वर्ष पूर्व ही समाप्त हो गया था। पाठकों की निरन्तर माँग आ रही थी। ___अत: आज द्वितीय संस्करण को प्रकाशित करते हुए हमें उतनी ही प्रसन्नता है जितनी प्रथम संस्करण के प्रकाशन के समय थी। आशा है अब पाठकों की माँग को हम पूरा करने में सक्षम हो सकेंगे।
इस समय ग्रन्थमाला आर्थिक संकट में चल रही है। वर्णी-वाणी, जैनदर्शन, सत्य की ओर, अध्यामपत्रावली और समयसार-प्रवचन के पूर्व संस्करण समाप्त हो जाने से उनका पुन: प्रकाशन कराया गया है और जिनमें लगभग तीस हजार रुपया लग चुका है। हमें तत्काल दश हजार रुपयों की और जरूरत है, जिससे प्रेस आदि का बकाया रुपया चुकाया जा सके। अनुरोध है कि समाज के साहित्यानुरागी ग्रन्थमाला के संरक्षक सदस्य एवं ग्राहक बनकर हमें सहायता करें तथा उदारदानी ग्रन्थमाला को दान देकर सहयोग करें।
सबके आभार सहित
चमेली कुटीर, डुमराँव बाग अस्सी, वाराणसी-५ २७ मार्च, १९७५
(डॉ०) दरबारी लाल कोठिया
मन्त्री
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