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________________ जीवाजीवाधिकार ४५ के नियामक नहीं है। जैसे अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्वादि। किन्तु जो असाधारण गुण हैं वही पदार्थों की भिन्नता के नियामक हैं। इसीसे आचार्यों का कहना है कि पदार्थ अपने स्वरूप से सत्स्वरूप होकर भी पदार्थान्तर की अपेक्षा से असत्स्वरूप हैं अथवा अन्यापोहरूप हैं। इसीसे पदार्थ अमेचक भी है और मेचक भी है। आत्मनश्चिन्तयैवालं मेचकामेचकत्वयोः। दर्शनज्ञानचारित्रैः साध्यसिद्धिर्न चान्यथा।।१९।। अर्थ- आत्मसम्बन्धी जो मेचक और अमेचक की चिन्ता है उसे छोडो। दर्शन-ज्ञान-चारित्र गुणों के द्वारा ही आत्मस्वरूप साध्य की सिद्धि है और कोई भी उपायान्तर आत्मा की सिद्धि में प्रयोजक नहीं है। इसी सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र गुण की जबतक मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र रूप परिणति रहती है तबतक आत्मा इस संसार में भ्रमण करता है और नाना प्रकार के द:खों का पात्र होता है। ऐसे द:ख, जिनका निरूपण करना अशक्य है, किन्तु विचार से प्रत्येक को उन दुःखों की अप्रशस्तता का ज्ञान हो सकता है। इन दुःखों से बचने का उपाय आचार्यों ने सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र ही को बतलाया है। और जितने भी व्यापार हैं वे इसी रत्नत्रय की प्राप्ति के अर्थ हैं। यदि इस रत्नत्रयी का लाभ नहीं हुआ तो व्रत, तपश्चरण आदि का जितना प्रयास है सब जल विलोवने के सदृश है। अत: जिन्हें इन संसार-सम्बन्धी यातनाओं से भय है उन्हें सब प्रकार के पुरुषार्थ से इस रत्नत्रयी-कण्ठिका को अपने हृदय का हार बनाना चाहिये।।१६।। आगे दृष्टान्त द्वारा कहते हैं कि मोक्ष की सिद्धि आत्मा की उपासना से ही हो सकती है जह णाम को वि पुरिसो रायाणं जाणिऊण सद्दहदि। तो तं अणुचरदि पुणो अत्थत्थीओ पयत्तेण।।१७।। एवं हि जीवराया णादव्वो तह य सद्दहेदव्वो। अणु चरिदव्वो य पुणो सो चेव दु मोक्ख-कामेण।।१८।। (जुअलं) अर्थ- जैसे धन का अर्थी पुरुष राजा को जानकर उसकी श्रद्धा करता है, तदनन्तर प्रयत्न द्वारा उसके अनुकूल आचरण करता है, ऐसे ही मोक्ष की कामना रखनेवाले पुरुष को जीवरूपी राजा को जानना चाहिये, तदन्तर उसकी श्रद्धा करना चाहिये और तत्पश्चात् उसी के अनुकूल आचरण करना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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