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________________ छली के साथ छल करना आवश्यक है. श्रीपुर नगर में चन्द्र नाम का राजा राज्य करता था । उसी नगर में धीर नाम का सेठ रहता था और उसकी पत्नी का नाम धारिणी सेठानी था, उनके मेघ नाम का पुत्र था । उसने धर्मशास्त्र और कर्मशास्त्रों का अध्ययन किया । पिता ने उसका विवाह भी कर दिया था । एक समय अपने पिता के समक्ष आकर वह पुत्र बोला- मैं धनोपार्जन के लिए विदेश जाना चाहता हूँ। कहा है ५६. विदेशे स्वस्य मनुजा: शक्तिं च प्रायो ऽर्जयन्ति चरित्रं प्राप्ताः, जानन्ति, अर्थात् - परदेश में गया हुआ मानव धन/ऐश्वर्य का उपार्जन करता है। खुद की शक्ति / सामर्थ्य का आकलन करता है । अन्य लोगों के चरित्र और स्वभाव को भी जान पाता है। - यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः, स पण्डितः, स श्रुतवान्गुणज्ञः । स एव वक्ता सच माननीयः सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ॥ , Jain Education International वैभवम्। देहिनामपि ॥ अर्थात् जिसके पास धन होता है, वही मनुष्य कुलीन है, वही पण्डित है, वही ज्ञानवान है, वही गुणवान है, वही वक्ता है, वही माननीय है क्योंकि दुनिया के सारे गुण इस कांचन / धन में ही निवास करते हैं। पिता की इच्छा न होने पर भी उसने चन्दन की लकड़ी से अपने बैलगाड़ियों को भर लिया और प्रस्थान की तैयारी कर दी। उस समय उसके पिता ने अपने पुत्र को कहा - यदि तुम्हारा कुसुमपुर जाना हो तो सावधानी रखना क्योंकि वहाँ धूर्त बहुत रहते है, वे छल-प्रपंच के द्वारा तुम्हे ठग लेंगे । अत: तुम वहाँ जाने पर सबसे पहले मण्डविका दुकान लेना और चन्दन को सोने के हिसाब से टुकड़ों-टुकड़ों में बेचना । पुत्र ने पिता की बात स्वीकार की और वहाँ से प्रस्थान किया । क्रमशः प्रयाण करता हुआ कुसुमपुर से ५ कोस पहले ही अपना पड़ाव डाला। उसी समय ४ धूर्त उसके पास आये। उन धूर्तों ने जहाँ सार्थवाह का शुभशीलत For Personal & Private Use Only 71 www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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