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जितने भी रुपये लिये हैं, उसके १० गुणा रुपया प्रदान करो अन्यथा बन्दीखाने की हवा खाओ।
राजा का हुक्म और बन्दीखाने के भय से समस्त वैद्यों ने मणक से जो कुछ लिया था उसका १० गुणा देकर अपना पिण्ड छुड़ाया। ५५. अयोग्य का राजा बनने पर प्रजा का दमन.
__चन्द्रपुर नगर से धन नाम का सेठ अपने नौकर के साथ परदेश की ओर चला। बीच में एक झाड़ के नीचे सेठ आराम करने लगा और उसका नौकर उस सेठ की पग-चम्पी करने लगा। बातें करते हुए सेवक ने कहा - सेठजी ! संयोग से यदि आप राजा बन जाएँ तो राज्य का पालन कैसे करेंगे?
___ सेठ ने कहा - मैं तुझे मंत्री बनाऊँगा और सारी प्रजा को सुखसम्पन्न बनाऊँगा।
मजाकिया लहजे में सेठ ने भी नौकर से पूछा - कदाचित् कर्म-योग से यदि तुम राजा बन जाओ तो राज्य का पालन कैसे करोगे?
नौकर ने कहा - बिल्ली के भाग से यदि छींका टूट जाए और मैं राजा बन जाऊँ तो समस्त प्रजाजनों को दुःख के सागर में डूबो दूंगा।
क्रमशः सेठ और नौकर आगे चले। आकिस्मात् ऐसा संयोग बना कि लक्ष्मीपुर का अपुत्रीय राजा मर गया था। मन्त्रियों आदि ने हाथी को अधिष्ठित कर नगर और नगर के बाहर घुमाया और भाग्य से उस अधिष्ठित हाथी ने सेठ के नौकर चम्पक के गले में माला डाल दी। वह नौकर चम्पक राजा बन गया। उसने सोचा - यह सेठ सारी जिन्दगी मेरा मालिक रहा है और मैं इसका नौकर । यदि यह भेद खुल गया तो लोग मुझे धिक्कार की नजरों से देखेंगे, अतः मंत्री को भेजकर सेठ को बुलाया और लल्लोचप्पो करके उसको मंत्रियों में मुख्य बना दिया।
__उस दुष्ट चम्पक राजा ने राजा बनने के साथ ही अपनी क्षुद्र प्रवृत्ति के कारण जनता पर अनेक प्रकार के कर लगाये, निरपराधी सजन लोगों को भी
शुभशीलशतक
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