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________________ ५४. नुस्खा लिखना ही क्या उपचार है? वीरपुर नगर में भूपड़ नाम का राजा राज्य करता था। उसके राज्य में ५०० वैद्य थे। मणक नाम का एक व्यक्ति राजा का मनोरंजन करता रहता था। समस्त वैद्यों को अपनी-अपनी विद्या का घमण्ड था। उस घमण्ड को दूर करने के लिए वह मणक सोच-विचार कर एक वैद्य के समीप गया और भेंट में नारियल और कुछ रुपये रख कर कहा - मेरे सिर में भयंकर दर्द है, इसको तत्काल ही दूर कीजिए। वैद्य ने तत्क्षण ही नुस्खा लिख कर दे दिया। इस प्रकार गुप्त रूप से समस्त वैद्यों के घर जाकर, नारियल आदि भेंट कर, अपनी शिरोवेदना प्रकट कर सबसे नुस्खे लिखवाता रहा। सबने अलग-अलग औषधोपचार लिखा। मणक ने समस्त नुस्खों की दवा एक कागज पर लिखी और राजा के आगे उस कागज को रखकर कहा - महाराजा ! ये वैद्य लोग कुछ नहीं जानते, घमण्ड में चूर रहते हैं, बीमार का अच्छी तरह परीक्षण भी नहीं करते हैं। राजा ने यह सुनकर कहा - हे वैद्य लोगों! क्या आप लोग रोग का निदान भी अच्छी तरह नहीं कर पाते हैं? वैद्यों ने उत्तर दिया - हम लोग सम्यक् प्रकार से बीमारी का निदान करते हैं और उसके पश्चात् ही उपचार करते हैं। तब मणक ने वैद्यों द्वारा पृथक्-पृथक् लिखित नुस्खे सामने रखे और राजा से कहा - हे राजन् ! ये वैद्य लोग मेरे जैसे अधिकार सम्पन्न व्यक्ति की बीमारी को पकड़ नहीं सके और रोग को जान नहीं सके तो ये लोग सामान्य गरीब आदमियों का क्या निदान/उपचार करेंगे? मैं मूर्ख हूँ, मैंने यह प्रयोग किया है अत: आप मुझे दण्ड दें। इन लोगों ने रुपये/फीस लेकर भी मेरे सिरदर्द को नहीं जान सके। राजा ने उसी समय यह आदेश दिया - आप वैद्य लोगों ने मणक से 68 शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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