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________________ अर्थात् - भूतकाल में भी शशकी के गर्भ से उत्पन्न ऋष्यशृङ्ग नाम के महामुनि हुए हैं, किन्तु वे अपने तप के बल से ब्राह्मण कहलाये, अत: जन्मजात जाति का मानना व्यर्थ है। मण्डूकीगर्भसम्भूतो, माण्डव्यश्च महामुनिः। तपसा ब्राह्मणो जात-स्तस्माज्जातिरकारणम्॥ अर्थात् - पूर्व में भी मेंढ़की के गर्भ से उत्पन्न माण्डव्य नाम के महामुनि हुए हैं, किन्तु वे अपने तप के बल से ब्राह्मण कहलाये, अतः जन्मजात जाति का मानना व्यर्थ है। उर्वशीगर्भसम्भूतो वशिष्ठश्च महामुनिः। तपसा ब्राह्मणो जात-स्तस्माजातिरकारणम्॥ अर्थात् - भूतकाल में भी उर्वशी देवांगना के गर्भ से वशिष्ठ नाम के महामुनि हुए हैं, किन्तु वे अपने तप के बल से ब्राह्मण कहलाये, अतः जन्मजात जाति का मानना व्यर्थ है। अत: आचार ही प्रधान है, कुल या जाति नहीं। कहा भी है:आचारः कुलमाख्याति, देशमाख्याति भाषितम्। सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति, वपुराख्याति भोजनम्॥ अर्थात् - आचार-व्यवहार ही कुल को प्रकट करता है, बोली ही देश को प्रकट करती है, संभ्रम ही स्नेह को प्रकट करता है और शरीर सौष्ठव ही भोजन को प्रकट करता है। अत: उन दोनों ने यह निर्णय लिया कि इस सम्बन्ध को किसी के सामने प्रकट नहीं किया जाए। ५३. पद, देश और काल के अनुसार ही उपचार. जो जिस प्रकार के मानस/व्याधि वाला होता है, उसको उसी प्रकार का उपदेश या औषधी देना चाहिए। शुभशीलशतक 66 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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