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________________ मैंने मदन ने एकान्त में अपनी पत्नी को पूछा - तुमने मेरे साथ विवाह किया, पुत्र भी हुआ, तुम्हारे साथ मैंने अनेक प्रकार के भोग भोगे। अब तुम सत्य बताओ कि तुम किसकी पुत्री हो? । उसने कहा - मैं पूर्व में चाण्डाल कुल में उत्पन्न हुई थी। मैं जब ५ वर्ष की थी तो मेरे माता-पिता कुटुम्ब के साथ प्रदेश चले गये। वहाँ मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई। मैं अकेली रह गई। बहुत दु:खी हुई और किसी देवकुल में जाकर रहने लगी। एक रोज गदाधर ब्राह्मण इस देवकुल में आए, मुझे देखा और पूछातुम कौन हो? मैंने कहा - मैं ब्राह्मण की लड़की हूँ। मेरे माता-पिता मर गये है, मेरा कोई आसरा नहीं है। यह सुनकर सन्तानरहित गदाधर ब्राह्मण मुझे अपने घर ले आए। पुत्री के समान मेरा लालन-पालन किया। उस गदाधर के तुम प्रिय शिष्य होने के कारण उन्होंने तुम्हारे साथ मेरा विवाह कर दिया। यह है मेरी कहानी। दूसरे दिन श्रीधर ने अपने पिता मदन को पत्नी के साथ हुई सारी बातचीत सुनाई। दोनों ने आपस में विचार-विमर्श किया। भेद न खुल जाए इसलिए धर्म शास्त्रों/पुराणों का आश्रय लिया और निर्णय किया - पहले भी तो कई चाण्डाल ब्राह्मण हुए हैं। कहा है : कैवर्तीगर्भसंभूतो, व्यासो नाम महामुनिः। तपसा ब्राह्मणो जात-स्तस्माजातिरकारणम्॥ अर्थात् - पूर्व में भी कैवट की लड़की से उत्पन्न व्यास नाम के महान् मुनि हुए हैं, किन्तु वे अपने तप के बल से ब्राह्मण कहलाये, अतः जन्मजात जाति का मानना व्यर्थ है। शशकी गर्भसम्भूतो, ऋष्यशृङ्गो महामुनिः । तपसा ब्राह्मणो जात-स्तस्माज्जातिरकारणम्॥ शुभशीलशतक 65 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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