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________________ चित्रकार ने अनुरोध किया - हे देव! आपने कहा है तो मैं आपसे वर माँगता हूँ कि भविष्य में आप किसी की जीव हिंसा न करें। यही वर मुझे चाहिए। यक्ष के पुनः कहने पर चित्रकार ने कहा - मैं किसी के शरीर का अंश मात्र भी देख लूँ तो उसके सम्पूर्ण शरीरावयव का चित्र बना सकूँ, ऐसी शक्ति मुझे प्रदान करें। यक्ष ने प्रसन्नता से स्वीकार किया और वरदान को कार्यरूप में परिणत किया। यह वही चित्रकार सोम शर्मा आपकी चित्रशाला में काम करने आया है। इसने महारानी के चरणों की अंगुलियाँ या अंगूठा देख लिया होगा, उसी यक्ष के वरदान स्वरूप इसने महारानी का पूर्ण चित्र बना दिया। इसमें चित्रकार का कोई दोष नहीं है। अत: इसे दण्ड न दें। राजा, राजा ही होता है, हठी होता है, मन-मौजी होता है। राजा ने इस बात का परीक्षण करने के लिए अपनी सेविका का केवल अंगूठा दिखाया और कहा - इसका चित्र बनाओ। चित्रकार ने हू-बहू चित्र बना दिया। राजा चमत्कृत हुआ, किन्तु घमंड में आकर उस चित्रकार का अंगूठा और एक अंगुली कटवा डाली और उसे निकाल दिया। उसी चित्रकार सोम शर्मा ने मृगावती का दूसरा चित्र बनाकर चण्डप्रद्योतन राजा को दिखलाया। चण्डप्रद्योतन उस चित्र पर मोहित हो गया और राजा शतानीक को कहलाया - तुम्हारी महारानी हमारे अन्तपुर की शोभा बनेगी, अतः हमें अर्पण कर दो। यदि तुम मेरे शर्त स्वीकार नहीं करते हो तो युद्ध के लिए तैयार रहो। महाराजा शतानीक ने उसकी माँग को अस्वीकार किया, फलतः मालवदेशाधिपति चण्डप्रद्योतन अपनी सेना लेकर कौशाम्बी नगरी आया। महाराज शतानीक ने अपने को कमजोर समझ कर नगर के दरवाजे बंद कर दिये। चण्डप्रद्योतन की सेना ने दुर्ग को चारों तरफ से घेर लिया। इसी बीच 52 शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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