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________________ उसका चित्र बनाना प्रारम्भ किया। संयोग से मृगावती का चित्र बनाते समय उसके गुह्य स्थान को चित्रित करते हुए स्याही का धब्बा गिर जाता था। उसे बारम्बार हटाने का प्रयत्न भी किया, किन्तु वह नहीं हटा। एक समय महाराजा शतानीक उस चित्रशाला का निरीक्षण करने आये। निरीक्षण करते समय मृगावती के चित्र पर उनकी दृष्टि पड़ी। गुह्य स्थान पर कृष्ण बिन्दु को देख कर राजा सोचने लगा - 'इस चित्रकार ने निश्चित रूप से मेरी पत्नी के गुप्त स्थान को देखा है अत: यह बात कोई भी समझ पाये इसके पूर्व ही इस चित्र को और चित्रकार को नष्ट कर देना चाहिए।' राजा ने तत्काल ही सोम चित्रकार को मारने का हुक्म दे दिया। उसी समय अन्य अनेक चित्रकारों ने आकर राजा से निवेदन कियामहाराज! इसका हनन मत करो। इसको देवता का वरदान है कि किसी भी वस्तु के एक अंश को देख लेता है तो वह पूर्ण चित्र का निर्माण कर सकता है। पूर्व कथानक सुनाते हुए कहा - साकेतनपुर में सूरप्रिय नाम का एक यक्ष हुआ था। प्रति वर्ष उसका चित्र बनाया जाता था। वह उस चित्र और उस चित्रकार को मार डालता था। यदि कोई चित्रकार किसी वर्ष चित्र न बनाता तो वह नगर को नष्ट करने के लिए आमादा हो जाता था। ऐसी दशा में साकेतनपुर के राजा ने यह आदेश निकाला कि प्रति वर्ष बारी-बारी से इस यक्ष का चित्र बनाया जाए। चित्रकारों के नाम की चिटिकाएँ बनाकर घड़े में डाली जाती थी। जिसके नाम की चिटिका निकलती उसको मजबूरी में उस यक्ष का चित्र बनाना पड़ता था। एक समय एक बुढ़िया के पुत्र का नम्बर आ गया। उस समय उसकी माता रोने लगी। संयोग से उस समय चित्रकार सोम भी वहाँ पहुँच गया। बुढ़िया के रोने का कारण पूछा। माता ने घटना सुनाई। सोम ने कहा- 'हे माता ! तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे पुत्र की रक्षा करूँगा।' उस सोम चित्रकार ने शुद्ध होकर मुखकोश बाँधकर छठ (दो उपवास) की तपस्या करते हुए यक्ष का चित्र बनाना प्रारम्भ किया। उसके व्यवहार से यक्ष प्रसन्न हुआ और उसने कहा - चित्रकार ! मैं प्रसन्न हूँ, वर माँगो। शुभशीलशतक 51 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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