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________________ मूढ़क और हम्मीर राजा को १२,००० मूढ़क तथा सुरताण को २१,००० मूढ़क प्रदान किये। (१०० मन का एक मूढ़क होता है) दानसाल जगडू त्रणी, केती हुई संसारि। नवकरवाली मणी अड तेहिं अग्गला विआरि॥ अर्थात् - जगडू शाह की दानशालाओं के समान संसार में कितनी दानशालाएँ है? जैसे नवकरवाली (माला) में १०८ मणियें होते हैं, उसके आगे का विचार करना चाहिए। एक दिन पाटन नगर के पास में ही जगडू सेठ की दानशाला होने के कारण बीसल राजा वहाँ पर पहुँचा। उसने वहाँ देखा कि उस दानशाला में २०,००० लोग भोजन कर रहे थे। यह दृश्य देखकर बीसलराज ने जगडू शाह को कहा - 'अन्न तुम्हारा हो और मेरी तरफ से घी भी हो।' तदनुसार भोजन में घी भी दिया जाने लगा। बीसल राजा ने तेल भेजा किन्तु जगडू शाह अपने सत्रागार में घी भी देने लगा। एक समय राजा ने जगडू के पास से जी जी शब्द सुना, उसी समय किसी चारण ने कहा बीसल तूं विरुई करइं, जगडू कहावइ जी। तुं नमावइ तेलसुं उअ नमावइ घीइ॥ अर्थात् - हे बीसल! तू राजा कहलाता है और जगडू शाह जी कहलाता है। तू तेल देकर जगत को नमनशील बनाता है और जगडू शाह घी देकर दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है। जगडू सेठ ने अपने जीवन काल में १०८ नये जिन मन्दिरों का निर्माण करवाया, शत्रुञ्जय तीर्थ की बड़े महोत्सव के साथ तीन बार यात्रा की और वह प्रति वर्ष आठ बार साधर्मिक वात्सल्य के साथ संघ पूजा करता था और दीन-दुखि:यों के दुःख को दूर करता था। २०. सेठ जगत्सिंह का गृहचैत्य तीर्थ के समान है. एक समय तीर्थ-यात्रा को ध्यान में रखकर जिनप्रभसूरि गाँव-गाँव और नगर-नगर में देवमंदिरों को नमस्कार करते हुए चले। श्री अहमद शाह शुभशीलशतक 18 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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