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________________ चपलता से मोम की एक ईंट उसमें डाल दी। मोम गल गया । उसमें से सोने की ईंट नजर आई। सेठानी ने देखा और मन में सोचा, . बोलचाल न होते हुए भी धन के लोभ से जगडू को कहा 'इधर देखो ।' जगडू ने सामने होते हुए भी रुष्ट होने के कारण उसको नहीं देखा, तब सेठानी ने कहा - 'हमारी मेण की ईंटें स्वर्ण की ईंटें बन गई हैं । ' सेठ ने उस स्वर्ण की ईंट को देखा, सोचा कि परीक्षण किया जाए कि क्या मोम में छुपी हुई सब ही सोने की ईंटें हैं? परीक्षण किया, मोम से आच्छादित सोने की ईंटें ही निकली। पश्चात् प्रच्छन्न रूप से घर में लाकर मेण को अलग कर शुद्ध सोने को रख लिया । - उस समय सेठ की पत्नी ने सेठ को कहा - 'गुरु महाराज को बुलाते 4 धर्म कार्यों में धन खर्च करना है ।' बुलाने पर गुरुराज आये । उन्होंने कहा चाहिए | धन शाश्वत नहीं होता है । ' गुरु महाराज ने जब लोगों से मुख से यह सुना कि 'सेठ जगडू ने मेण का व्यापार किया है तो वे मन में व्यथित हुए और जगडू सेठ के यहाँ गौचरी / भोजन लेने के लिए नहीं जाने लगे । उनके घर को छोड़कर अगले घरों में चले जाते । ' - एक दिन देववन्दन के लिए शिष्य सहित गुरुदेव को बुलाया। गुरुदेव गृहमन्दिर में जिनेश्वर देव का वन्दन करते हैं, उसी समय एक छोटे साधु ने कहा - 'गुरुदेव ! क्या जगडू के घर में सोने की लंका आ गई है? इधर देखिये तो सही । ' 16 तब गुरुराज ने स्वर्ण की ईंटों को देखकर जगडू से पूछा- 'ये सोने की ईंटें कहाँ से आई हैं?' जगडू ने मोम की ईटों के व्यापार की जो भी घटना हुई, वह उनको बतलाई। जगडू से उत्तर प्राप्त कर गुरु महाराज हर्षित हुए, वहाँ से उपाश्रय में आए। उस समय जगडू ने कहा - ' 'गुरुदेव ! मैंने मोम के भ्रम से यह ईंटें खरीदी थीं। वे ईंटें ही स्वर्णमय हो गईं। राज-भय से हम कुछ नहीं बोले ।' उन स्वर्णमय ईंटों के व्यापार से जगडू सेठ करोड़पति बन गया । शुभशीलशतक For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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