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________________ 'यदि इस प्रकार की शीतल छाया साथ में चले तो बहुत ही सुखदायक हो ।' जिनप्रभसूरि - 'वृक्ष भी साथ चलेगा । ' सुलतान वहाँ से उठकर आगे चलने लगे, साथ में वट-वृक्ष भी सायंकाल तक साथ चला। बाद में उस स्थान को भी देखा, वह स्थान शून्य था। सायंकाल के पश्चात् जिनप्रभसूरि ने उस वृक्ष को अपने स्थान पर वापस भेज दिया। सुलतान आश्चर्यचकित रह गया। किस दरवाजे से जाऊंगा. ४. एक समय सुलतान ने जिनप्रभसूरि से कहा - 'हे जिनप्रभसूरि ! तुम विद्वान् हो । मंत्र- कला विज्ञ हो तो यह बतलाओ कि मैं आज नगर के किस दरवाजे से बाहर जाऊँगा ।' 1 जिनप्रभसूरि ने तत्काल ही एक पत्र में लिखकर बंद कर सुलतान को दे दिया और कहा - 'नगर के बाहर निकलने पर ही इस पत्र को पढ़ें।' इधर सुलतान एक दरवाजे की ईंटें हटवाकर नगर से बाहर निकला और एक स्थान पर बैठ कर उस पत्र को पढ़ा । विस्मय विमूढ़ हो गया । पत्र में वहीं लिखा था । खल का भोजन करोगे. — एक दिन सुलतान ने कहा ' आचार्य ! यह बतलाओ - मैं आज भोजन में क्या ग्रहण करूँगा?' जिनप्रभसूरि ने एक पत्र पर लिखकर बंद कर सुलतान को दे दिया और कहा 'भोजन के पश्चात् इसे पढ़ें।' जिनप्रभसूरि को झूठा सिद्ध करने के लिए बहुत सोच-विचार के पश्चात् खल का भोजन किया । भोजनोपरान्त आचार्य के पत्र को देखा, जिसमें लिखा था कि 'आप खल का भोजन करेंगे।' सुलतान प्रसन्न हुआ । 6 Jain Education International शुभशीलशतक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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