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________________ इसी बीच में प्रतीहार ने राजसभा में आकर प्रणाम करके कहा - देव! कटक के अधिपति (सेनापति) प्रमाडि राजा ने आपके लिए कल ही उपहार (भेंट) भेजा है। राजा ने पूछा - वह क्या है? प्रतीहार ने कहा - मन्त्रीगण द्वार पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, वे ही इसका उत्तर देंगे। राजा ने कहा - सम्मान के साथ उनको यहाँ ले आओ। वे मन्त्रीगण वहाँ आए और उन्होंने प्रणाम कर निवेदन किया - हे देव ! सोलह चाँदी के हाथी और बारह पेटिकाएँ ऋद्धि से भरी हुई पीछे आ रही हैं । हे देव ! बंगाल देश के राजा ने आपके लिए अनेक वस्तुओं के साथ दर्शनीय छुरी भेजी है। वह छुरी प्रमाडि राजा ने ही भेजी है। राजा ने कहा - पहले उस छुरी को ही दिखाओ। उन्होंने राजाज्ञा प्राप्त कर सात वस्त्रों में लिपटी हुई छुरी निकालकर राजा के हाथ में रखी। राजा ने देखा - प्रशंसा की। सभासदों ने भी देखा - उन्होंने भी प्रशंसा की। सिद्धि और बुद्धि योगिनियों ने भी उसे हाथ में लेकर देखा - प्रसन्न हुई और उस छुरी को राजा को वापस दे दिया। इसी बीच अवसर देखकर मन्त्री शान्तु मेहता ने कहा - हे देव! इन योगिनियों के साथ आप वार्तालाप करिये और अपनी कला दिखलाइये और प्रतिपक्षियों की कला भी देखिये। राजा ने कहा - आप लोग अपनी-अपनी कला दिखलाइये। उन दोनों ने ७२ कलाओं में अपना कौशल दिखलाया। मन्त्री ने कहा- अब आप भी अपनी कला दिखलाइये। 150 शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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