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________________ समस्त तापसों को केवलज्ञान हो गया है, इस बात की जानकारी गौतमस्वामी को न होने के कारण उन तापसों को निर्देश दिया कि 'समवशरण में विराजमान भगवान् को प्रदक्षिणा देकर वन्दन करो।' वे तापसगण भी केवल प्रदक्षिणा देकर केवली परिषदा में जाकर बैठ गये। उस समय गौतम स्वामी ने कहा – 'मूर्ख, मूर्ख ही होते हैं, कहने पर भी भगवान् को वन्दन नहीं कर रहे हैं।' उसी समय वर्धमान स्वामी ने कहा – 'हे गौतम! केवलज्ञानधारकों की आशातना मत करो।' उत्तर में गौतमस्वामी ने कहा - 'भगवन् ! केवलियों की आशातना कैसे?' तब प्रभु ने उन तापसगणों के केवलज्ञान उत्पत्ति का प्रसंग बतलाया। तत्काल ही गौतमस्वामी तापसों के समीप जाकर नमस्कार कर उनसे क्षमायाचना की और प्रभु की तरफ मुख करके बोले - 'भगवन् ! जिनको भी मैं दीक्षा प्रदान करता हूँ उन सबको केवलज्ञान हो जाता है, किन्तु मुझे नहीं हो रहा है, इसका मुझे खेद है।' भगवान् ने कहा - 'हे गौतम! तुम्हे भी केवलज्ञान अवश्य होगा, निश्चिन्त रहो।' २. मुल्ला की टोपी को आकाश से उतारना. एक समय श्री जिनप्रभसूरि पिरोज सुरत्राण (मोहम्मद तुगलक) के साथ बैठे हुए गोष्ठी कर रहे थे। उस समय कई मौलवी वहाँ आये। एक मौलवी ने अपनी टोपी को आकाश की तरफ उछाल दिया। वह टोपी आकाश में निराधार ही खड़ी रही। यह देखकर सुलतान ने जिनप्रभसूरि की ओर देख कर कहा - 'अहो ! बड़े आश्चर्य की बात है।' सूरिजी ने कहा - वास्तव में ही आश्चर्यकारी घटना है। सूरिजी ने मंत्र/बल से उस टोपी को आकांश में स्तम्भित कर दिया। इसके बाद सुलतान ने मुल्ला को कहा - 'टोपी को वापस बुला लो।' शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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