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बाहड़पुर नाम का नगर बसाया और वहाँ त्रिभुवनपालविहार नाम का मन्दिर बनवाकर पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति की स्थापना की। तीर्थ-पूजा हेतु २४ उद्यानों सहित नगर को संघ-ग्रामवासियों को समर्पित कर दिया
सप्तषष्टियुता कोटी, व्ययिता यत्र काञ्चनी। स श्रीवाग्भट्टदेवोऽयं, वर्ण्यते न बुधैः कथम्॥
अर्थात् - इस मन्दिर के निर्माण में वाग्भट्ट देव (बाहड़) ने ६७ करोड़ कंचन मुद्राएँ व्यय कीं। क्या विद्वद्गण इस सुकृत कार्य की प्रशंसा नहीं करेंगे?
आम्रभट्ट (आम्बड़) ने भृगुपुर नगर में शकुनिविहार का उद्धार और निर्माण करवाया और उसके निर्माण में ६ करोड़ सोनैया खर्च की। ९५. ध्वजारोपण.
एक समय महाराजा सिद्धराज जयसिंह ने भगवान् रुद्र का विशाल मन्दिर बनवाया। ध्वजारोपण के समय मन में यह विचार आया कि 'ध्वजा तो केवल शिवालय पर ही होनी चाहिए, अन्य मन्दिरों पर नहीं।' ऐसा विचार कर समस्त जिन मन्दिरों पर जो ध्वजाएँ फहरा रही थीं वे हटा दी जाए, ऐसा आदेश दिया। मन्त्री-मण्डल ने इसका विरोध भी किया किन्तु उसने नहीं सुना।
___ महाराजा सिद्धराज जयसिंह एक समय मालवा मण्डल के अन्तर्गत श्रीनगर (उज्जैन) आया। वहाँ समस्त मन्दिरों पर फहराती हुई ध्वजाएँ देखकर राजा ने पूछा - ये किनके मन्दिर है जिन पर ये ध्वजाएँ फहरा रही हैं?
उत्तर मिला - जिन मन्दिरों पर ये ध्वजाएँ लहरा रही हैं, वे सब शिव, ब्रह्मा और तीर्थंकरों के मन्दिर हैं।
सुनकर राजा रुष्ट हुआ और बोला – जब मैंने हुक्म निकाल दिया कि जैन मन्दिरों पर ध्वजाएँ नहीं फहरायेंगी, फिर आप लोग जैन मन्दिरों पर ध्वजा क्यों लहरा रहे हैं?
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शुभशीलशतक
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