SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हुई मणि लटक रही थी यह उसी का प्रभाव है । उसके मालिक को पैसे देकर उसने वह बकरी खरीद ली। उस मणिरत्न के प्रभाव से वह समृद्धिशाली बन गया। पत्तन के महाराज सिद्धराज जयसिंह को सवा लाख मुद्राएँ भेंट की, क्रमशः वह बड़ा व्यापारी बन गया । एक समय विदेश से मजीठ आदि से भरे हुए जहाज आए थे । उसने मजीठ का जहाज खरीद लिया। उस मजीठ के बीच में बहुतसी सोने की छड़ें निकलीं। उस दिन से उसकी समृद्धि बढ़ती चली और वह नगरसेठ बन गया। वह प्रतिवर्ष बहुत लोगों को साथ लेकर शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा करता था। उसने बहुत से जैन मन्दिर बनवाये । स्वयं की यश-प्रशस्ति गान के बिना ही अनेक मन्दिरों के जीर्णोद्धार करवाए। गुप्त रूप से साधर्मिक भाईयों की सहायता करता रहा और साधुजनों को अन्न, पान, वस्त्रादि देकर अपना जन्म सफल करता रहा। कहा भी है - छलिछन्नदुम प्रायः इव, प्रच्छन्नकृतं, सुकृतं अर्थात् - जिस प्रकार मिट्टी में बोया हुआ बीज वृक्ष का रूप धारण कर लेता है, उसी प्रकार गुप्त रूप से किया हुआ सुकृत कार्य भी प्रायः सौ गुणा सम्पत्ति को प्रदान करता है । जैसे- छागी के गले में बंधी हुई मणि कल्पवृक्ष समान हुई । ९३. अयोग्य को नमन नहीं. पूर्व में चालुक्यपति कुमारपाल का मन्त्री राजपितामह विरुद को धारण करने वाला आम्रभट्ट था । उसकी प्रशंसा गाान में कहा गया है : द्वात्रिंशद्द्द्रम्मलक्षान् भृगुपुरवसते: सुव्रतस्यार्हतोऽग्रे | कुर्व्वन् माङ्गल्यदीपं ससुरवरनरश्रेणिभिः स्तूयमानः ॥ मृत्स्नाछादितसमस्तबीजमिव । शतशाखतामेति ॥ यो दादर्थिव्रजाय त्रिजगदधिपतेः सद्गुणोत्कीर्त्तनायां । स श्रीमानाम्रदेवो जगति विजयतां दानवीरोऽग्रयायी ॥ Jain Education International शुभशीलशतक For Personal & Private Use Only 135 www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy