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________________ गया हो, इस प्रकार अम्बड़ ने कृष्णमुख होकर कृष्णछत्र और कृष्णवर्ण का मुकुट धारण किया। पाटण के बाहर डेरा डाल कर काले रंग के तम्बू में ठहर गया। किसी को भी सूचित नहीं किया कि मैं आ गया हूँ। कुमारपाल राजा ने अपने अनुचरों से पूछा - नगर के बाहर कृष्ण वस्त्रधारी यह किसकी सेना आई है? उस समय गुप्तचर ने कहा - मल्लिकार्जुन राजा से पराजित होकर, लज्जित होकर, अम्बड़ अपनी सेना के साथ बाहर ठहरा हुआ है। यह सुनकर कुमारपाल ने विचार किया- यदि अम्बड़ को इस प्रकार की गहरी लज्जा है तो वह अवश्य ही उसको पराजित कर देगा। तत्पश्चात् कुमारपाल राजा ने अम्बड़ को सम्मानित कर विशाल सैन्यबल के साथ शत्र-विजय के लिए उसको वापस विदा किया। वहाँ से उसी मार्ग से चलता हुआ वह कोङ्कण देश पहुँचा और अपनी सेना को दो भागों में विभक्त कर, चारों ओर से मल्लिकार्जुन को घेर कर युद्ध के लिए सन्नद्ध हो गया। दोनों ओर की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ, रक्तपात हुआ। सेना का संचालन करते हुए युद्ध के मैदान में ही हाथी पर बैठे हुए मल्लिकार्जुन को जमीन पर गिराकर अम्बड़ ने कहा- 'अपने इष्ट देवता का स्मरण कर लो।' उसी समय शीघ्रता के साथ अम्बड़ ने मल्लिकार्जुन का सिर काटकर सोने की थाली में रखा। मल्लिकार्जुन के नगर से शृंगार-कोटि-शाटिका आदि प्रसिद्ध एवं बहुमूल्य वस्तुएँ लेकर अम्बड़ वापस पाटण की ओर चला। क्रमशः पाटण पहुँचकर जय-जयकार के घोष के साथ अम्बड़ नगर में प्रविष्ट हुआ। वहाँ अपने आत्मीय मंत्री को छोड़कर महाराज कुमारपाल की राज्यसभा में पहुँचा और राजा को नमस्कार कर ढकी हुई स्वर्ण की थाली राजा को भेंट स्वरूप प्रस्तुत की। इस थाली में मल्लिकार्जुन का कटा हुआ सिर था। उसके साथ ही शृंगार-कोटि-साटिका, माणिक्य रत्न का पछेवड़ा, पाप-क्षयकारी हार, संयोगसिद्धि तलवार या कटार, सोने के भरे हुए ३२ घड़े, ६०० मोती, ४ दन्तवाला सफेद हाथी, १२० पात्रों में साढ़े चौदा करोड़ मुद्रा भेंट की। शुभशीलशतक 132 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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