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________________ तत्पश्चात् औरत का वेश पहनाकर अपनी सखी बतलाते हुए वह रणघंटा की माता यमघंटा कुट्टिनी के पास गई। रात्रि में वे चारों सेठ उस कुट्टिनी के यहाँ आए और उन्होंने अपनी चाल-बाजी/धूर्तता का वर्णन करते हुए कहा -'नगर में एक नया सेठ आया है, उसका सारा माल हमने अपने कब्जे में कर लिया है और साक्षियों के समक्ष हमने यह कह दिया है कि 'जब तुम वापिस लौटोगे तो हम तुम्हारा जहाज भर देंगे।' वेश्या ने कहा – 'हे मूर्यो ! तुम्हारे दुर्भाग्य से यदि कदाचित् वह अपने जहाज के मशकों को हवा से भर लिया तो तुम क्या करोगे?' उन चारों ने कहा - वह तो बेवकूफ है उसमें बुद्धि ही कहाँ है? ___ उसी समय वह जूतों की भेंट देने वाला धूर्त भी वहाँ आ गया, उसने कहा - मैंने उसे बढ़ियाँ मोजड़ी भेंट की है और उसे कह दिया है कि तुम जाते समय मुझे खुश करके जाना। इसलिए जाते समय वह कुछ भी वस्तु देगा तो मैं हर्षित नहीं होऊँगा। वाद-विवाद में मैं उसकी कोई अच्छी वस्तु अपने कब्जे में कर लूँगा। वेश्या ने कहा - तुम भी मूर्ख हो। तुम दोनों का झगड़ा राजा के पास पहुँच गया और उस समय उस श्रेष्ठिपुत्र ने यह कह दिया 'राजा के पुत्र हुआ है' उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी? तुम्हे झूठमुठ ही प्रसन्नता जाहिर करनी पड़ेगी और वह जीत जाएगा। उसी समय वह धूर्त भी आ गया और उसने कहा - हे श्रेष्ठिपुत्र! मेरे पिता ने तुम्हारे घर में १००० रुपयों में अपनी आँखे गिरवी रखी थी, वे आँखें जाते समय तुम मुझे देते जाना। वेश्या ने कहा - तुम भी बेवकूफ हो। जाते समय उस श्रेष्ठिपुत्र ने यदि यह कह दिया 'मेरे पिता के यहाँ हजारों आदमियों के नेत्र गिरवी पड़े हुए है, अत: तुम अपने पिता का दूसरा नेत्र भी ले आओ जिससे उसके साथ जॉच और वजन करके तुम्हे दे दूं।' हे धूर्त ! तुम अवश्य ही उसकी इस युक्ति के सामने हार जाओगे। शुभशीलशतक 105 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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