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________________ ६७. बिना याचना के ही मेघ वर्षा करता है. गुणकरई, गरुआ सहजि करसण सींचई सरभरई, अर्थात् - गुरुजन बिना किसी स्वार्थ या लाग-लपेट के उनके सम्पर्क में आने पर मानव के हृदय में सहज भाव से सद्गुणों की वृद्धि करते हैं, प्रत्युपकार की अपेक्षा किये बिना ही प्रिय पति अपनी प्रियतमा को प्रेम - स्नेह प्रदान करता है, सरोवर जल से परिपूर्ण इसलिए रहता है कि किसान लोग उस जल से जमीन को सिंचित करते रहें और मेघ भी बिना किसी आशा से पृथ्वी को तर-बतर कर देता है । कंतमकारणजाजाणि । मेघ न मागई दाणु ॥ किसी नगरी में धनदत्त नामक एक व्यवहारी रहता था। एक दिन उसके घर पर कोई अतिथि आया । व्यवहारी प्रसन्न हुआ। उसने अपनी पत्नी को कहा - ' आगत पाहुणे को अच्छी तरह भोजन कराओ', ऐसा कहकर वह अपनी दुकान पर चला गया। अतिथि उस घर में स्वादिष्ट भोजन कर प्रसन्न हुआ और भोजनोपरान्त उसने पान चबाया । कुछ देर तक विचार कर उसने सेठाणी को बहन शब्द से सम्बोधित करते हुए कुछ ताम्बूल पत्र उसको दिये । वह विदा हो गया । सायंकाल व्यवहारी धनदत्त अपने घर आया तब उसकी पत्नी ने यह कहते हुए अतिथि आपके लिए प्रदान कर गया है- पान के पत्ते उसको दिये । व्यापारी विचार करने लगा 'अहो ! यह तो असमान व्यवहार है । ' - Jain Education International उसके चेहरे पर आए मनोगत भावों को पढ़कर उसकी पत्नी ने कहा- 'आगत अतिथि ने निर्विकार भाव से यह ताम्बूल पत्र आपके लिए दिये है । हे प्रियतम ! इसमें आपको किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए। आप इस ताम्बूल का भक्षण करें क्योंकि कुछ विशिष्ट लोग बिना याचना के ही सद्भावपूर्वक अपनी कृपा-वृष्टि कर जाते हैं।' पत्नी के कहने से उसने ताम्बूल भक्षण किया । शुभशीलशतक For Personal & Private Use Only 97 www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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