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આમ ભાગ પહેલાના
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इस पुस्तक ने आबू जानेवाले लोगों के एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की है । जैन- यात्रियों को आबू सरीखे विशाल क्षेत्र का पूर्ण रूप से आनन्द लेने में जो कठिनाई आज तक पड़ती थी वह इस पुस्तक के प्रकाशित होने से सर्वथा दूर हो गई है । पुस्तक में आबू के भिन्न भिन्न स्थानों का जो वर्णन किया गया है वह न केवल रोचक वरन इतना स्पष्ट है कि पाठकों को वे स्थान यथार्थ में अपने सामने ही दीख पड़ते हैं । विमलवसही, श्री० महावीरस्वामी का मंदिर, भीमाशाह का मंदिर, अचलगढ़ के जैन मंदिर, चौमुखजी का मंदिर आदि स्थानों के जो सचित्र वर्णन हैं, वे लेखक के सहान् परिश्रम और विद्वत्ता का परिचय देते हैं । यह पुस्तक केवल जैन यात्रियों की दृष्टि से ही नहीं वरन ऐतिहासिक दृष्टि से भी बड़े महत्त्व की है । पुस्तक की छपाई, जिल्द आदि पूर्ण संतोषजनक है ।
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स्वराज्य. " ( खंडवा )
नवम्बर, १९३४.
( ७ )
આખૂના પારસલમાંથી આબૂ વાંચી ધણા આનદ થયા છે. આખૂ પુસ્તક ઐતિહાસિક કાલમાં ભારતપર ધણા જ સુંદર પ્રકાશ પાડે છે. આ પુસ્તક મનુષ્ય માત્રને સંગ્રહ કરવા લાયક બન્યું છે. એની દરેક મુક્તક હૈ પ્રશંસા કરી એ બરાબર છે. તેમાં વળી ઉપાદ્ધાતે આ પુસ્તકને ઉજજવલ અનાવેલ છે.
ન્યાયવિશારદ, ન્યાયતીર્થં ઉપાધ્યાય શ્રીમંગલવિજયજી મહારાજ.
जरीय, ( भानभोभ )
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