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________________ अनुपूर्ति - लेखा : ५३३ (त्से) न आत्मश्रेयोर्थ अरिनेमिनिं कारितं प्रतिष्टि ष्ठि) तं श्रीमानदेवसूरि संताने श्रीपद्मदेवसूरिभिः || ( ५२५ ) एकतीर्थी सं' १२............वदि ३ शन (नौ) झाजू श्राविकया आत्मीयपू (पु)या श्री पार्श्वनाथवि कारित प्रतिक्षित श्रीनरचंद्रसूरिभिः । ( ५२६ ) एकतीर्थी सं. १३०० वर्षे वैशाप ( ख ) वदि ५ श्रीजीवदेवसूरि संताने श्रे० लाषा श्रेयोर्थ पार्श्वनाथविवं कारितं ॥ ( ९२८ ) पंचतीर्थी सं० १३१९ वर्ष चैत्र वदि तूणा भा० रूपल लापण ख ( क ? ) लत्रेण. श्रीशांतिनाथ प्र० सिद्धसेनसूरिभि: ॥ ७४ ( ५२७ ) एकतीर्थी ॐ संवत् १३०९ मार्गशीर्ष वदि ५ श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्री जिनकुशलसूरिभिः श्रीमहावीरदेवविवं प्रतिष्ठितं कारितं च स्वश्रेइ (य) से भण० गांगा सुतेन भण० वयरा सुश्रावकेण पुत्र सोनपाल सहितेन ॥ Jain Education International बुधे श्रीवायडीयगच्छे श्रे जयताकेन श्री و For Personal & Private Use Only ५ गुरौ ओसवालज्ञातीय व्य० श्र भांण श्रे • www.jainelibrary.org
SR No.003986
Book TitleArbud Prachin Jain Lekh Sandohe Abu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthamala Ujjain
Publication Year1994
Total Pages762
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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