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अ. प्रा. जैनलेखसन्दोहे
ध्वज अवारी................................."
........... ..............................श्रीकर संघवी गोव्यंद प्रशस्ति लिपावी जं(ऊ)बरणी स्थाने राजश्रीराजधर देवडा चुंडा प्रासादनी अक्षरविधि ऐह प्रासाद नीपजतां पश्वा कोई करवा न लहिई वासासु १०० कमठा हुइ आडु पश्वा करिते राजधर निर्वहि देवडु सांडु ठाकुरु परभु भाट सेलहु तपाईक परथु देवदा ब्रह्मदा को काई मागवा न लहि मागि ते राजधर चु(चूं )डु निर्वहि गोव्यद करा नई संमध नही ऐह विधि सीलीया पलाविइ देवडु डुंगरस देवडु सतु लंद विरसी सबलाइ ववि वेटु ठाकुर माहव ऐतला शीलीया माघि व्यास सांड ववि लीबु ववि भीमा देवडा सिंघा सापि ।
वज धजनी रीति आषी चडतु आषीनी रीति अधिली चडनु(तु) आविलीनी रीति आदिमायनी दीवालीईनी वरसधि(थी) करस २४ थी चोपा(खा) माणां २४ नावेद भणी तेल करस ९ दीवा भणी आणड प्रासादि आवारी हइतु कणहतां २४ एतलु लाग श्रीमाता देवविशिष्टपितं । श्रीमाताथितं द्राम १२ चकड अचलेश्वर द्राम २ द्राम ।
ओरासा(ओरीया)ग्रामस्थलेखः ।
(४६३ ) २ . श्रीपार्श्वनाथः व्यः ऊजलसत्कः ॥ ..
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