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________________ ९२ अ. प्रा. जैनलेखसन्दोहे गूर्जर महामात्य - श्री तेजःपालकारित - लूणसिंहवसहिकागतप्रशस्ति-लेखाः । ( २५० ) 11 20 11 वंदे सरस्वतीं देवीं याति या कविमानसं । नीयमाना निजेनेव यानमानस वासिना ॥ १ ॥ यः [][तिमानप्य रु[णः ] प्रकोप शांतोपि दीप्तः स्मरनिग्रहाय । निमीलिताक्षोपि समग्रदर्शी स वः शिवायास्तु शि* वातनूजः ॥ २ ॥ अणहिलपुरमस्ति स्वस्तिपात्रं प्रजाना मजरजि[द् ] रघुतुल्यैः पाल्यमानं चुलुक्यैः । विरमति रमणीना यत्र [ वक्त्रे ]न्दु [मंदी] कृत इव सितपक्षप्रक्षयेऽप्यंधकारः ॥ ३ ॥ आ लेख - संदोहना आगळ अने पाछळना तमाम लेखोमांथी जे जे लेखोमां बच्चे बच्चे कौंसमां फुल ( * ) आपेलां छे ते, ए बधा लेखो ज्यां ज्यां जेमां कोतरायेला छे त्यांनी एक पंक्ति पुरी थयानी अने मधी पंक्ति शरु यानी निशानी तरीके आपेलां छे. अर्थात् असल लेखोमां नवी पंक्ति शरु यानी निशानी तरीके ए फुलो आपेलां छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003986
Book TitleArbud Prachin Jain Lekh Sandohe Abu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthamala Ujjain
Publication Year1994
Total Pages762
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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