SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ अ. प्रा. जैनलेखसन्दोहे भां० यशोववल सुत भा० शालिगेन देवश्रीअरनाथ बिबस्य स्वश्रेयसे प्रतिष्ठा कारिता । श्री अर्बुदतीर्थे सकलाभ्युदयकारी भवतु अरनाथः ॥ छ ॥ फाल्गुन शुदि १ च्यवणं ॥ मार्ग शुद्धि १० जन्म ॥ मार्ग शुदि ११ दीक्षा ॥ कार्त्तिक शुद्धि १२ केवलज्ञानं ॥ कार्त्तिक शुदि १० मोक्षः ॥ इति पंचकल्याणकानि ॥ ( १२३ ) सं० १३७८ वर्षे सा० वीक सुत लप ( ख ) म भार्या बकायी श्राव (वि) या आत्मश्रेयो [S] ( ) श्रीमल्लिनाथः का ० ! ( १२४ ) संवत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ श्रीबृहद्गच्छे श्रीमदारासण सत्कश्रीयशोदेवसूरिशिष्यः (ष्य) श्रीदेवचंद्रसूरिभिः श्रीश्रेयांसप्रतिमा प्रतिष्ठिता || प्राग्वाटज्ञातीय महामात्य श्री पृथ्वीपालसत्क प्रतीहार पून - चंद्र [] धामदेव भ्रातृ सिरपाल भ्रातृव्यक देसल ठ[ ० ] जसवीर धवल ठ[0] देवकुमार ब्रह्मचंद्र ठ[0] वीसल रामदेव [0] आसचंद्र जाजा प्रभृतीनां ॥ छ ॥ ( १२५ ) ८० ॥ संवत् १२८८ वर्षे चैत्र वढि ३ शुक्रे धर्कटवंशीय बाहटि सुत श्रे० भानू सुत थे० भाइलेन थे० लिंवा भ्रातृ केल्हण देदा अचल भावदेव बाहs भादा वोहडि वोसरि पाल्हण कोहल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003986
Book TitleArbud Prachin Jain Lekh Sandohe Abu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthamala Ujjain
Publication Year1994
Total Pages762
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy