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________________ प्राचीन लेखनकला और उसके साधन २७ ७. यह श्लोक और इसके टबा (टब्बा) के अनुवाद का जो पन्ना मेरे पास है उसमें श्लोक और श्लोक से भी अधिक अस्तव्यस्त एवं असंगत इसका अनुवाद है; अतः उसके सारमात्र का ही यहाँ उल्लेख किया है । काजल को भिगोदे इतने गौमूत्र में और हीराबोळ तथा गौंद का सामान्य पतला रस हो उतने पानी में पूरी रात भिगोने के बाद, तीनों को तांबे अथवा लोहे की कढ़ाई में कपड़े से छानकर एक साथ मिलाकर ताँबे का खोल चढाए हुए लकडी के घुट्टे द्वारा खूब घोंटें । जब घोंटते-घोंटते मिश्रण का पानी लगभग स्वयं सूख जाये तब मिश्रण को सुखा दें । इसमें पानी डालकर भीगने के बाद घोंटने पर लिखने योग्य स्याही तैयार होती है । यदि भाँगरा का रस मिले तो उपर्युक्त तीनों वस्तुओं के साथ ही डालें जिससे स्याही अत्यन्त चमकिली और तेजयुक्त तैयार होगी । लाक्षारस का विधान-साफ पानी को खूब गरम करें । जब वह पानी खदकने लगे तब उसमें लाख का चूर्ण डालते जायें और हिलाते जायें, जिससे लुग्दा न बने, ताप सख्त करें । फिर दस मिनिट बाद लोदर का बुरादा मिलाएँ । तदनन्तर दस मिनिट बाद टंकणखार डालें । फिर उस पानी से , अहमदाबादी चोपडा (रजिस्टर) के कागज पर लाइन खींचकर देखें । यदि स्याही पन्ने के दूसरी तरफ नहीं फूटे तो उसे अग्नि पर से उतार लें और ठण्डा होने के बाद उपयोग में लें । इस पानी को ही लाक्षारस समझें । दरेक वस्तु का वजन निम्नोक्त प्रमाण में होना चाहिए : पावशेर सादा पानी, रु. १ भार पीपल की सूखी हुई लाख जिसे दानालाख कहते हैं । रु. ०|| भार पठानी लोदर और एक अन्नी भार टंकणखार । जितने प्रमाण में लाक्षारस बनाना हो उतने ही प्रमाण में दरेक वस्तु का प्रमाण समझें । यदि ताड़पत्रीय स्याही के लिए लाक्षारस तैयार करना हो तो उसमें लोदर के साथ लाख से पोना हिस्सा मजीठ डालें, जिससे अधिक रसदार लाक्षारस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003982
Book TitlePrachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Uttamsinh
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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