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आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म. उपरोक्तानुसार विधिपूर्वक तैयार स्याही हिंगळोक, हरिताल, सफेदा आदि मिश्रण को एक थाली में तेल चुपडकर उसमें छोटेछोटे टुकडे करके रखें । सूखने के बाद आवश्यकता पड़ने पर इन टुकडों को पानी में मिलाकर स्याही बनाई जा सकती है। .
सोने-चाँदी की स्याही द्वारा लिखने का विधान : सुनहरी तथा चाँदी की स्याही द्वारा लिखे जानेवाले पन्नों को काला, ब्ल्यू, लाल, जामली आदि रंगों से रंग दिया जाता है । और फिर सुनहरी स्याही द्वारा लिखना हो तो हरिताल११ और चाँदी की स्याही से लिखना हो तो सफेदा द्वारा अक्षर लिखकर उन पर सोने-चाँदी की स्याही को पीछी (पक्षियों की पंख) द्वारा भरें (हरिताल-सफेदा के अक्षर गीले हों तब ही उन पर सोने-चाँदी की स्याही का लेप करें ।) सूखने के बाद उन पन्नों को अकीक अथवा कसोटी के घुट्टे द्वारा घोंटने पर अक्षर सुनहरी स्याही किए हुए गहनों की तरह तेजयुक्त चमकीले दिखाई देंगे।
परचूरण : (परिशिष्ट) पुस्तक के प्रकार-याकिनी महत्तरासूनु श्रीमान् हरिभद्रसूरि ने दशवैकालिकसूत्र की प्रथम गाथा की टीका में 'संजम' पद की व्याख्या करते हुए पाँच प्रकार की पुस्तकों का 'उक्तं च' कह कर उल्लेख किया है :
गंडी कच्छवी मुट्ठी, संपुडफलए तहा छिवाडी य । एयं पुत्थयपणयं, वक्खाणमिणं भवे तस्स ॥१॥ बाहल्लपुहत्तेहिं, गंडीपृत्थो उ तुल्लगो दीहो । कच्छवि अंते तणुओ, मझे पिहलो मुणेयव्वो ॥२॥
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